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________________ ३० हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास उदाहरण नहीं दिया। अमरसिंधुर का १९वीं शती के कवियों में नामोल्लेख ‘राजस्थान के जैन साहित्य' में भी हुआ पर वहाँ किसी रचना का नाम या उसका विवरण नहीं दिया गया है।११ अमृत मुनि आपकी दो रचनाओं नेमिगीत' चौ० सं० १८४९ और नेमिनाथ चोविसी सं० १८३९ का उल्लेख उत्तमचंद कोठारी ने अपनी सूची में किया है किन्तु उन्होंने और कोई विवरण नहीं दिया है।१२ अमृतविजय आप तपागच्छीय विजयदेव सूरि, रत्नविजय, विवेकविजय के शिष्य थे। इनकी रचनाओं का विवरण नीचे दिया जा रहा है नेमिनाथ राजिमती संवाद ना चोक २४ चोक (सं० १८३९ कार्तिक कृष्ण ५ रविवार) इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है "आराधो जिनदेव कुं जपो ते श्री नवकार, सिद्ध निरंजन मन धरी, पावो सुख भंडार। सुणो भविक मन भाव धरी, भोग जोग की बात, राजुल पूछे नेम कुं, दो में कोन विख्यात। इसी प्रश्न का उत्तर नेमि द्वारा कवि ने इसमें प्रस्तुत किया है। रचनाकाल- कीय उगणचालीस अठारें, काती बद पांचम रविवारे ओ चोबीस चोक चतर धारे। गुरु रत्नविजय पंडित राया, बुध सीस विवेकविजय भाया, तस सीस अमृत गुण गाया। १३ इस रचना के आधार पर अनुमान होता है कि कोठारी की सूची में दर्शित अमृत मुनि और अमृत विजय संभवत: एक ही व्यक्ति है। आगे राजुल नेमिजी से सीधा सवाल करती है "छारत हो यह संपदा, एकछत्र जदुराय, मनवंछित सुखे छाड़ के जोग ग्रह्यो किस काजा?" नेमिनाथ जोग का महत्त्व समझा कर राजुल को सान्तवना देते हैं, वह भी उनके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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