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________________ अगरचंद अमरसिंधुर २९ उनके समसामयिक होने के कारण यह भी १९वीं शती के रचनाकार थे। इनकी शांति जिन स्तुति (१३५ कड़ी सन् १८१९ रांदेर) प्राप्त है जिसका विवरण आगे दिया जा रहा है— आदि अंत कलश 'परम धरम धन पूरवा, सद्गुरु सुरतरु सार, आवे मति ऊकति अधिक, अचल अवनि उपगार । ' यह कल्याणक प्रभुतणा, गुरु कृपाइं गायां उलास रे, संवत अठार उगणि मां, रही रांदेर चोमास रे । शाश्वत तपगच्छ गगन शशि यश घणो सबल सूरि सिरताज रे, अधिक सुख उदयसूरि सदा संथुण्यो शांति गणिराज रे । विवुध विलक्षण वाणिई, सदाविजय सुखकार रे, सद्गुरु सुरेन्द्रं सदा करें अमर मुनि उपगार रे । इसका अंतिम कलश इस प्रकार है विश्वसेन नंदन त्रिजगवंदन, भावकि भंजन अपहरो, सोलमां स्वामि मुगतिगामी, कह्या कल्याणक वंछित करो। बहुभाँति युते चित्तें भविक आराधो अति भलाइ, सुगुरु सुरेन्द्रविजय संपद नित्य अमरमुनि सुख निरमला । ' यह भी हो सकता है कि अमरविजय ( १ ) और (२) दोनों एक ही कवि हो केवल गच्छभेद के कारण दोनों को भिन्न मान लिया गया हो। इस विषय में शोध की आवश्यकता है। अमरसिंधुर ये खरतरगच्छीय क्षेमशाखा के साधु जयसार के शिष्य थे। इनका जन्मनाम अमरा या अमरचंद था। सं० १८४० में इनकी दीक्षा समारोहपूर्वक जैसलमेर में सम्पन्न हुई थी। सं० १८७७ से १८९१ के बीच ये अधिकतर बंबई रहे, वहाँ इनकी प्रेरणा से चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर और उपाश्रय का निर्माण हुआ। इन्होंने 'नवांणु प्रकारी पूजा' १८८८, प्रदेसी चौ० १८९२, कुशलसूरि स्थान नाम गर्भित स्तव० १८९२, सोलह स्वप्न चौढ़ालिया के अलावा करीब दो सौ पद, स्तवन और गीत आदि लिखे हैं। इन रचनाओं का संपादन श्री अगरचंद नाहटा ने करके बंबई चिंतामणि पार्श्वनाथादि पद स्तवन संग्रह में प्रकाशित किया है। " नवाणु प्रकारी पूजा सं० १८९२ कार्तिक कृष्ण ६ बंबई का उल्लेख मो० द० देसाई ने किया है । १° उन्होंने भी नाहटा कीही भांति रचनाओं का १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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