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________________ द्वितीय-अध्याय १९वीं शती (वि०) के जैन हिन्दी साहित्य का विवरण अगरचंद खरतरगच्छीय भट्टारक शाखा के साधु हर्षचंद आपके गुरु थे। इन्होंने 'सीमंधर चौढालिया' सं०१८९४ में रामपुर में बनाया। श्री अगरचंद नाहटा ने इनका नाम १९वीं शताब्दी के प्रमुख कवियों में गिनाया है। अनोपचंद यह खरतरगच्छीय क्षमा प्रमोद के शिष्य थे। आपने 'गोड़ी पार्श्व वृहत् स्तव' की रचना चैत्र शुक्ल पंचमी सं० १८२५ में की। अनोपचंद शिष्य अनोपचंद के किसी अज्ञात शिष्य ने 'मानतुंग मानवती संबंध चौपाई' की रचना मा० शुक्ल १३ सं० १८७२ में की। इसकी हस्तप्रति सं० १८८० की लिखी हुई विक्रमपुर ज्ञान भंडार में सुरक्षित है। अमरचंद लोहाड़ा __ आपने 'बीस विहरमान पूजा (सं० १८९१) की रचना की। अमरविजय१ ये खरतरगच्छीय उदयतिलक के शिष्य थे। इन्होंने हिन्दी में 'अक्षर बत्तीसी' की रचना की।६ इनकी पचीसो रचनायें राजस्थानी मिश्रित हिन्दी में प्राप्त है। 'सीमंधर स्वामी स्तवन' सं० १८१४ में लिखी गई। चूंकि ये १८वीं शती के उत्तरार्द्ध से लेकर १९वीं शती के पूर्वार्द्ध तक रचनाशील थे, इसलिए १८वीं शती के रचनाकारों के साथ इस ग्रंथ के भाग३ में इनकी चर्चा की जा चुकी है, अत: यहाँ इनका विस्तारपूर्वक वर्णन नहीं किया जा रहा है। इनके संबंध में अधिक जानकारी के लिए हिन्दी जैन साहित्य का वृहत् इतिहास खण्ड३ पृष्ठ ३५-३६ देखा जाय। अमरविजयर आप तपागच्छीय सदाविजय के प्रशिष्य और सुरेन्द्र विजय के शिष्य थे। इन्होंने उदयसूरि का सादर स्मरण किया है जिनका देहावसान सं० १८३७ में हुआ था। इसलिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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