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________________ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ताण्डव हो रहा था। एक तरफ घोर दरिद्रता से पीड़ित दो जून की सूखी रोटी के लिए मोहताज जनता थी तो दूसरी और अपार संपदा का ऐय्यासी में अपब्यय करने वाले सामंत और अहलकार थे। कृषि की व्यवस्था तकनीकी पिछड़ेपन और संसाधनों की कमी के कारण बुरी थी। इसलिए भारतीय कृषक वर्ग तवाह था। ___ भारत से सूती कपड़े, रेशमी कपड़े, लोहे का सामान, नील, शोरा, अफीम, चावल, गेहूँ, चीनी, मशाले और औषधियों का निर्यात विदेशों को होता था, किन्त ग्रामवासियों की गरीबी और ग्रामों के स्वावलंबी होने के कारण आयात कम होता था इसलिए व्यापार लाभदायक था। इसलिए व्यापारी भी अपेक्षाकृत संपन्न थे। किन्तु अव्यवस्था, अराजकता और लगातार सैनिक अभियानों के कारण आंतरिक व्यापार असुरक्षित था, व्यापारिक मार्गों पर प्राय: कारवाँ लूट लिए जाते थे। छोटे-छोटे भस्वामी जगह-जगह चुंगी वसूलते थे। इन बाधाओं के बावजूद भी व्यापार धंधे की स्थिति कृषि की तरह चौपट नही हो गई थी। व्यापार की स्थिति ठीक थी। महाराष्ट्र, आन्ध्र और बंगाल में जहाज निर्माण उद्योग विकसित हो गया था। यूरोपिय कम्पनियां अपने इस्तेमाल के लिए भारत में बने जहाज खरीदती थी। १९वीं शती के पूर्वाद्ध में भारत विश्वव्यापार तथा वाणिज्य का प्रमुख केन्द्र समझा जाता था। रूस के पीटर महान ने कहा था 'याद रखो कि भारत का वाणिज्य विश्व का वाणिज्य है और जो उस पर पूरा अधिकार कर सकेगा वही यूरोप का अधिनायक होगा, इसलिए कई देशों की कम्पनियाँ भारतीय व्यापार के लिए आगे आई पर ब्रिटिश व्यापारियों ने इस मंत्र को अच्छी तरह समझा और वे शीघ्र ही यूरोप की सर्वश्रेष्ठ शक्ति बन आये। यहाँ के वाणिज्य पर अधिपत्य जमा कर ही अंग्रेज यूरोप की महाशक्ति और समुद्र की लहर-लहर पर शासन करने वाले विश्व के प्रमुख साम्राज्यवादी बन सके। सामाजिक जीवन धर्म, क्षेत्र, कबीला, भाषा जाति-संप्रदाय आदि नाना आधारों पर बटा हुआ था। उच्च और निम्न वर्ग की जीवन शैली एक दूसरे से नितांत भिन्न थी। हिन्दू चार वर्णों, अनेक जातियों उपजातियों में विभाजित थे। इस व्यवस्था ने सामाजिक क्रम में लोगों का स्थान स्थायी रूप से निश्चित कर दिया था। जातीय पंचायतें परिषदें और प्रधान तथा मुखिया सामाजिक क्रम का थोड़ा भी उल्लघंन नहीं होने देते थे। वे जाति-नियमों को सख्ती से लागू करते थे, नियमों के उल्लघंन पर कठोर दण्ड देते थे, प्रायश्चित कराते थे और जाति बहिष्कृत भी कर देते थे। छूआछूत का कड़ाई से पालन करना पड़ता था। मुसलमान भी बुराई से एकदम अछूते नहीं थे। शिया-सुन्नी के झगड़े यदा-कदा होते थे। सामान्यता शरीफ और सम्पन्न मुसलमान निम्न वर्ग के मुसलमान को नीची निगाह से देखते थे, फिर भी उनमें हिन्दुओं से अधिक एका था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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