SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हि०जै०सा० की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि गया। मेरठ की छावनी से बगावत शुरू हो गई। प्रथम अफगान युद्ध (१८३८-४२) पंजाब युद्ध (१८१३-४८) और क्रिमिया युद्ध (१८५४ -५६) में अंग्रेजों की हार होने से ब्रिटिश फौज की अपराजेयता का भ्रम टूट गया था। मंगल पाण्डे की फॉसी के बाद सिपाही विद्रोह पूरे वेग से भड़क उठा। जन समर्थन के कारण विद्रोह की ज्वाला शीघ्र ही दावाग्नि की तरह दूर-दूर तक फैल गई; इसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों संप्रदायों के सिपाही और साधारण लोग कन्धे से कन्धा मिला कर अभूतपूर्व एकता के साथ खुलकर अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष में शामिल हुए। दिल्ली के अंतिम सम्राट् बहादुरशाह जफर' को विद्रोहियों ने अपना नायक बनाया। अन्य सहायकों में लक्ष्मीबाई, नाना साहब, कुँवर सिंह, बख़्त खाँ आदि अनेक शूरवीर थे । विद्रोह के प्रमुख केन्द्र दिल्ली, बरेली, झॉसी, कानपुर, आरा थे। उस समय सिन्धिया और सिक्खों ने विद्रोहियों का साथ नहीं दिया। शुरू में सेठ साहूकार और अंग्रेजियत परस्त कुछ नवशिक्षित युवकों ने भी विद्रोह में हिस्सा नहीं लिया लेकिन बाद में बुद्धिवादी युवक अपनी मूल पर पछताये और राष्ट्रीय आंदोलन का जमकर समर्थन किया। अंग्रेजी शासन थोड़े समय के लिए डॉवाडोल हो गया था और लगा था कि देश कम्पनी शासन का जुआ इसी बार कन्धे से उतार फेकेगा, पर दुर्भाग्य से वह स्वप्न सच नहीं बन सका क्योंकि बागियों के पास कम्पनी के प्रति घृणा के अलावा कोई सार्वजनिक या राष्ट्रीय स्तर का सकारात्मक मुद्दा नहीं था, इसलिए विद्रोह क्रमश: ठंड़ा पड़ता गया। जगह-जगह आंदोलनकारी पराजित होते गये। दिल्ली में हारने के बाद विद्रोह बिखर गया। एक-एक करके विद्रोही नेता समाप्त कर दिए गये। बहादुरशाह को कैद करके रंगून भेज दिया गया और विद्रोह दमन का पूरा खर्च मयसूदव्याज के देशवासियों से वसूला गया। संघर्ष एकदम व्यर्थ नहीं गया, कोई संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं जाता। कवि की यह उक्ति (Say not the struggle not availeth) 'मत कहो कि संघर्ष व्यर्थ गया' एक शाश्वत सत्य की व्यंजना करती है। यह प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष भारतीय इतिहास की एक गरिमामय युगांतकारी घटना सिद्ध हुई। कंपनी राज समाप्त हो गया। यह इस संघर्ष का ही सुपरिणाम था। महारानी विक्टोरिया भारत की राज-राजेश्वरी हुई और इतिहास का एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ। सामाजिक और आर्थिक स्थिति इस सदी में ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा भारतीय जनता का भयंकर आर्थिकशोषण और दोहन किया गया। लगान में लगातार बढ़ोत्तरी; कम्पनी के अहलकारों, उसके ठेकेदारों और जमींदारों के अत्याचार, आये दिन प्रतिद्वन्दी सेनाओं के आक्रमण और लूटपाट से जन जीवन दुर्वह हो गया था। अव्यवस्था का लाभ उठाकर जगह-जगह बटमारों ठगों, चोरों, डकैतों ने भी लूट-खसोट मचा रखा था। आर्थिक विषमता का देश में विकराल Jain Education International १९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy