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________________ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास बनाया भोजन करते थे। सन् १८४८ में कुछ शिक्षित युवकों ने साहित्यिक और वैज्ञानिक समिति की स्थापना की जिसकी दो शाखायें गुजराती और मराठी 'ज्ञान प्रसारक मंडलियाँ थी। ये लोग नारी शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी ने १८५१ ई० में पुणे में एक बालिका विद्यालय खोला और उसकी देखा देखी अन्य कई विद्यालय खुले। फुले महाराष्ट्र में विधवा विवाह आन्दोलन के अग्रदूत थे। विष्ण शास्त्री पंडित ने विधवा पुनर्विवाह मंडल की स्थापना की। अन्य समाज सुधारकों में गोपालहरि देशमुख, लोकहितवादी मंडल और कर्सन दास मूल जी के प्रयत्न भी उल्लेखनीय है। ज्योतिबाफुले माली परिवार में जन्में थे, वे अछूतों की दयनीय दशा के भुक्त भोगी थे अत: उन्होंने ऊँची जातियों के वर्चस्व के विरूद्ध अभियान चलाया। पारसी संप्रदाय के अगुआ दादाभाई नौरोजी ने 'पारसी ला असोसियेशन' की स्थापना की। इस संस्था ने भी नवजागरण में अपना अंशदान दिया। मुस्लिम संप्रदाय में यह काम कुछ हद तक सर सैयद अहमद खाँ ने किया। इन सब महापुरुषों और संस्थाओं के क्रियाकलापों से जन साधारण ने जागरण की प्रथम अंगड़ाई ली। लोग अपने अधिकारों के प्रति सचेत हुए और कम्पनी के शोषण तथा राष्ट्रीय अपमान से मुक्ति के लिए संगठित हुए। फलत: १८५७ में देश का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुआ। सन् १८५७ का विद्रोह यह विद्रोह कम्पनी प्रशासन के विरूद्ध जनता की संचित शिकायतों और विदेशी राज के प्रति उसकी नापसंदगी का परिणाम था। यद्यपि इसकी शुरूआत सिपाहीविद्रोह से हुई किन्तु इसका वास्तविक कारण व्यापक जन असंतोष था। कम्पनी के काले शासन ने देश के कृषकों, शिल्पियों, दस्तकारों और पुराने भूस्वामियों का इतना उत्पीड़नशोषण किया था कि सभी उससे छुटकारा चाहते थे। गोद न लेने की नीति के कारण देशी रजवाड़े भी असंतुष्ट थे। भारतीय उच्चवर्ग के लोग भी ऊँची सरकारी नौकरियाँ नहीं पाते थे। ईसाई मिशनरियों की गतिविधि तेज हो गई थी और धर्मप्राण जनता के मन में यह भय भर गया था कि अंग्रेजी राज उनके धर्म के लिए खतरा है। १८५६ में अवध के नवाब वाजिदअलीशाह को अयोग्य ऐय्याश घोषित करके उसे राज्यच्युत किया गया था। वादा यह किया गया कि नवाब को हटाकर प्रजा को कम्पनी शासन द्वारा अधिक सुख सुविधा दी जायेगी। पर ये दोनों बातें जब झूठी निकली तो देश के केन्द्र प्रदेश अवध में व्यापक जनरोष उमड़ा। उधर नाना साहब और लक्ष्मीबाई के साथ जो अन्याय हुआ था उसके विद्रोह की लहर अवध से झांसी तक फैल गई थी। सिपाही विद्रोह नये कारतूसों को लेकर शुरू हुआ जिन्हे मुंह लगाना पड़ता था और जिसमें चर्बी लगी होने की बात फैल गई थी, यह भी धर्म पर आघात समझा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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