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________________ हि० जै० सा० की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि १७ पूँजीपति और मजदूर तबके के लोग मिले जुले थे। राजाराममोहन राय को नवजागरण के अग्रदूतों में प्रधान व्यक्ति के रूप में गिना जाता है। उनके मन में प्राच्य दार्शनिक विचारों के साथ पाश्चात्य विचार धारा एवं संस्कृति के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान था। वे चाहते थे कि देशवासी विवेकशील और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ सभी नरनारियों की मानवीय प्रतिष्ठा और सामाजिक समानता के सिद्धांत को स्वीकार करें। देश में आधनिक उद्योगधंधे प्रारंभ हों। उन्होंने १८०९ ई० में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक एकेश्वरवादियों को उपहार (गिफ्ट टू मोनोइस्ट्स) (Giftto monotheists) फारसी में लिखी जिसमें अनेक देवी देवताओं के स्थान पर एकेश्वरवाद का समर्थन किया गया था। उन्होंने धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों, रूढ़ियों का विरोध किया; मूर्ति पूजा, जातिवादी कट्टरता और पाखण्डी धार्मिक कृत्य, अंधविश्वास, पुरोहितवाद आदि का खण्डन किया। सन् १८२० में उन्होंने अपनी एक अन्य रचना 'प्रीसेप्ट्स आफ जीसस' में न्यूटेस्टामेंट के नैतिक और दार्शनिक संदेश की प्रशंसा और उसमें वर्णित चमत्कारों की उपेक्षा की। वे प्राच्य और पाश्चात्य दर्शन तथा परंपरा और प्रगति में समन्वय स्थापित करना चाहते थे। स्वाभाविक था कि यथास्थितिवादी और रूढ़िवादी उनका विरोध करें। उन्हें समाज बहिष्कृत कर दिया गया, विधर्मी घोषित किया गया फिर भी वे हताश न हुए और सन् १८२९ में उन्होंने ब्रह्मसमाज की स्थापना करके अपने सुधारवादी आंदोलन की दिशा में क्रांतिकारी कदम रखा। सती प्रथा पर रोक लगाने का कानून उन्हीं के प्रयत्नों का फल था। औरतों को अधिकार दिलाना, शिक्षा का प्रचार करना उनका प्रमुख कार्यक्रम था। सन् १८३०-४० के बीच कलकत्ता में एक ऐग्लों इण्डियन सज्जन हेनरी विवियन डेरोजियों के प्रयास से यंगबगाल आंदोलन शुरू हुआ। इन लोगों ने मुक्त चिंतन, विवेकशील प्रामाणिक परख, समानता, स्वतंत्रता और सत्यप्रियता पर जोर दिया। वह प्रखर राष्ट्रवादी कवि था। उसने राममोहन राय की विचारधारा को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। सन् १८३९ई० में देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने राममोहन राय के विचारों के प्रचारार्थ तत्वबोधनी सभा की स्थापना की। इसमें ईश्वरचंनद्र विद्यासागर, अक्षयकुमार दत्त आदि प्रमुख व्यक्ति थे। सन् १८४३ में देवेन्द्र नाथ ठाकुर ने ब्रह्मसमाज का पुनर्गठन किया। इन व्यक्तियों और संस्थाओं के साथ ही आधुनिक भारत के निर्माताओं में ईश्वरचन्द्र विद्यासागर का नाम विशेष रूप से स्मरणीय हैं। पश्चिम भारत पाश्चात्य विचारों के प्रभाव क्षेत्र में बंगाल के बाद आया क्योंकि १८१८ से पूर्व पश्चिम भारत का कोई भूभाग ब्रिटिश नियंत्रण में नहीं आया था सन् १८४९ में परमहंस मंडली की स्थापना महाराष्ट्र में की गई। इसके संस्थापक भी एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे। तथा जाति पाति के भेदभाव नहीं मानते थे, अवों के हाथ का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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