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________________ हर्षविजय - हेमविलास आदि रचनाकाल पाठांतर - जुआ मांस दारु तणी, करे वेश्या सुं जोष, जीव हिंसा चोरी करे, परनारी नो दोष । अंत में रचनाकाल इस प्रकार दिया गया है - व्यसन सातमुं पर नारी नुं, प्रत्यक्ष पाय दीखायुं, रावण पदमोत्तर मणिरथ राजा तीनुं राज गमायुं । ग्राम कुकड़ीओ कर्यो चोमासो, संवत चोदो तेरह मांयो, कथाकारण आ ढाल ज कीनी, हरसेवक चित लायो गाम केकड़ी कियो चोमासो, वरस चवदोतरा मांहि, किक्ष कालनी ढाल बांधी, हीयडे सोभत चीत लाई। १४३४ २४१ रचनाकाल में पाठांतर के कारण अनिश्चय की स्थिति है। इसे सं० १७७४, १७१४ या १८१४ भी समझा जा सकता । जै० गु०क० के नवीन संस्करण के संपादक कोठारी ने इसे १९ वीं सदी की रचना बताया है। हीरा आप बूँदी निवासी थे। आपने सं० १८४८ में ४३५ ' नेमिनाथ व्याहलो' नामक लघुरचना अत्यन्त मनोहर गीतात्मक शैली में की है। खेद है कि रचना की गेयता का उदाहरण देने के लिए उपयुक्त उद्धरण नहीं उपलब्ध हो सका । हुलसा जी आपने सं० १८८७ में 'क्षमा व तप ऊपर स्तवन' की रचना पाली में पूर्ण की। इसकी हस्तप्रत आचार्य विनयचंद्र ज्ञान भण्डार जयपुर में सुरक्षित है । ४३६ मुनि हेमराज आप तेरापंथ के संस्थापक भीषण जी के शिष्य एवं पट्टधर थे। आपने भारीमल का बखाण नामक एक ग्रंथ १३ ढालों में लिखा । यह रचना सं० १८७९ में पीपाड़ नगर में पूर्ण हुई। यह कृति ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। भाषा राजस्थानी प्रधान मरुगुर्जर है। ४३७ हेमविलास - आप खरतरगच्छीय साधु ज्ञानकीर्ति के शिष्य थे। सं० १८७९ में इन्होंने 'ढूढक For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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