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________________ २२६ सरसुति (सुरसति) - आपकी रचना हैं 'मधुकर कलानिधि' (सं० १८२२ चैत्र सुदी १ ), रचनाकाल इन पंक्तियों में है— हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास संवत अठारह सै बावीस पहल दिन चैत सुदी; शुक्रवार दिन ग्रंथ उल्हास्यो सही । यह रचना महाराना माधव के विनोदार्थ लिखी गई थी, यथा श्री महाराना माधवेश मन कै विनोद हेत, सुरसति कीनी यह दूध ज्यों जमें दही | इस में शृंगार रस का वर्णन है, भाषा सुबोध हिन्दी है । ४०३ /सरुपाबाई ये लोका० पूज्य श्री श्रीमल की भक्त थी। संभवत: उनकी शिष्या भी हो। इन्होंने पूज्य श्री श्रीमल की संञ्झाय नामक रचना उनकी प्रशस्ति में लिखी है । ४०४ यह रचना जैन ऐतिहासिक काव्य संग्रह के पृ० १५६ - १५८ पर प्रकाशित है। सांवत ( सावंतराम ) ऋषि श्री अगरचंद नाहटा ने इन्हें विनयचंद का शिष्य बताया है और इनकी चार रचनाओं-गुणमाला चौ० सं० १८८५ दिल्ली, सती विवरण सं० १९०७ लश्कर, मदनसेन चित्रसेन चौढालिया १८७०, मदनसेन चौ० १८९८ बीकानेर का नामोल्लेख किया है । ४०५ श्री मो०द० देसाई ने इन्हें बखताकरचंद का शिष्य बताया है और उनकी गुरुपरंपरा मदनसेन चौ० का उद्धरण देकर इस प्रकार बताया है - 'ताराचंद, अनोपचंद, विनयचंद, बखताकरचंद का शिष्य' संबंधित पंक्तियाँ इस प्रकार हैं Jain Education International स्वामी जी ऋष मुनीराज आचारज गुण उजला, सव---नित ताराचंद जी निरमला। तत शिष्य आज्ञाकर श्री श्री अनोपचंद जी, तत शिष्य प्रबल प्रधान विनयचंद अमंद जी, तत शिष्य नो बहु राग श्री बखताकरचंद जी, तत शिष्य सावंत राम पांमे अती आनंद जी । मदनसेन चौ० की रचना सं० १८९८ फाल्गुन शुक्ल ७, बीकानेर में हुई For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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