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________________ सत्यरत्न - सबलसिंह २२५ सबलदास आप आसकरण के शिष्य और पट्टधर थे। पोकरण के लूणियाँ आणंद राज की धर्म पत्नी सुंदरबाई की कुक्षि से सं० १८२८ भाद्र में इनका जन्म हुआ था। जोधपुर की यात्रा के समय इनकी आसकरण जी से भेंट हुई। बारह वर्ष की वय में उनसे दीक्षा प्राप्त किया और सं० १८७२ में आसकरण जी के दिवंगत होने पर जोधपुर में उनके पट्ट पर आसीन हुए। इनकी रचनाओं का विवरण आगे प्रस्तुत किया जा रहा है ___शील संञ्झाय १८८७ नागौर (यह रचना जिनवाणी पत्रिका के वर्ष १६ अंक ११ में प्रकाशित है); अन्ना चौढालिया (६२ ढाल, सं० १८९० नागौर); वल्लभचंद्र चौ० (सं० १८९०, बीशलपुर), त्रिलोक सुंदरी ढाल (सं० १८९२)।२९९ इनकी कुछ अन्य रचनाओं का भी उल्लेख मिलता है यथा, आसकरण जी महाराज के गुण, गुरु गुण स्तवन, कनकरथ राजा का चरित्र, जुग मंदिर स्वामी की संञ्झाय, विमलनाथ का स्तवन, खंदक जी की लावणी, तामली तापस की चौ०,शंख पोरबली को चरित, साधू कर्तव्य की ढाल इत्यादि। राजस्थान का जैन साहित्य में इनका जो उल्लेख मिलता है वह कुछ भिन्न है। उसमें कहा गया है कि सबल दास ने १४ वर्ष (न कि १२ वर्ष) में सं० १८४२ में दीक्षा ली। इन्होंने दीक्षा आसकरण से नहीं बल्कि रायचंद से ली थी और इनका स्वर्गवास सं० १९०३ में हुआ था।४०० इनकी कविता के नमूने के लिए 'त्रिलोक सुंदरी ढाल अथवा चौपाई (सं० १८९२, फलोधी) का आदि और अंत प्रस्तुत हैआदि- विहरमान विसे नमुं, जयवंता जगदीस; अतिसेवंत अनंत जिन, तारक विस्वा बीस। अंत- शील उपदेश थी विस्तारो, पूज सबलदास जी चित लायो रे, लो। ऊछो अधिको आयो हुवे तो मीछामि दुक्कड़ गायो रे। रचनाकाल- अष्टादश सो बाणवे बरसे, कीयो फलोधी चोमासी रे, सील री महिमा सुणे सुणावे, जीण घर लीला विलासो रे। लो। ०१ इसमें सबलदास जी का जिस आदर के साथ स्मरण किया गया है उससे वे ही इनके गुरु प्रतीत होते है न कि आचार्य रायचंद। सबलसिंह ये खतरगच्छीय श्रावक थे। इन्होंने सं० १८६१ अक्षय तृतीया को मकसूदाबाद में 'बीसी' की रचना की।४०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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