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________________ २२४ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कि नाटक का विवरण उद्धरण न मिलने से यह कहना निराधार है कि नाटक के तत्त्वों का इस रचना में किस सीमा तक निर्वाह हो पाया है। सत्यरत्न आपकी दो रचनाओं का नामोल्लेख मात्र अगरचंद नाहटा ने किया है समेतशिखर रास सं० १८८० और देवराज वच्छराज चौ०; दूसरी रचना का केवल प्रारंभिक पत्र उपलब्ध है।३९५ मो०६० देसाई ने केवल एक रचना समतेशिखर रास२९६ (सं० १८८० भाद्र शुक्ल ५) का नामोल्लेख किया है। दोनों विद्वानों ने किसी रचना का उद्धरण आदि नही दिया है। सदानंद आप भूमिग्राम (भोगॉव) जिला मैनपुरी के निवासी श्री भवानीदास के पुत्र थे। इन्होंने सं० १८८७ में तोताराम जी के लिए 'कम्पिला की रथयात्रा ३९७ का पद्यवद्ध वर्णन किया है। कविता सामान्य कोटि की है। सबराज ये लोकागच्छीय श्रावक थे। इनके पिता का नाम हरषा था। इन्होंने 'मूलीबाई ना बारमास' (सं० १८९२ मागसर शुक्ल १३, गुरुवार) सायला में लिखा। उस समय वहाँ राजा वख्तसिंह का शासन था। इस बारमासे से मूलीबाई के संबंध में ज्ञात होता है कि वे दशा श्री माली वणिक रतनशा की पत्नी अमृतबाई की कुक्षि से पैदा हुई थीं और उनका विवाह नान जी कोठारी के साथ हुआ था। उनको गृहस्थ जीवन की निरर्थकता का बोध हुआ और उन्होंने सं० १८६५ में दीक्षा ली; जैन धर्मानुकूल जीवनयापन करते हुए सं० १८९० श्रावण शुक्ल १४ को संथारा द्वारा शरीर त्याग किया। बारमास की प्रारंभिक पंक्तियाँ निम्नांकित हैं हुं तो नमुं सिद्ध भगवंत, मुकी मन आमलो रे, गुण गाऊं मूलीबाई सती, सहु को सांभलो रे। रचनाकाल इन पंक्तियों में दिया गया है संवत अठार बाणुओ जोड़या मागसीर मास रे, तीथि बेरस ने गुरुवार, पख अजवास रे। मूलीबाई तणो महिमा, चउदश गाजे रे, भणे हरषा सुत सबराज, सायला मां विराजे रे।३९८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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