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शिवचंद || - संपतराय जा रहा हैं क्योंकि सन् १८६६ तक हिन्दी गद्य नये साँचे में नही ढली थी। कालचक्र नामक रचना में भारतेन्दु ने हिन्दी गद्य का नया रुप १८७३ में प्रस्तुत किया था। इसलिए भारतेन्दु पूर्व के हिन्दी गद्य के नमूने के रूप इसका ऐतिहासिक महत्त्व है
साँच कहता जीव के ऊपरि लोक दुखो व तुषों। साँच कहने वाला तो कहे ही कहा जग का भय करि राजदण्ड छोड़ि देता है वा जूंवा का भय करि राज मनुष्य कपड़ा पटकि देय है। तैसे निंदने वाले निंदा स्तुति करने वाले स्तुति करो, सांचा बोला तो सांच ही कहे।३८९
यह गद्य हिन्दी गद्य पुस्तकों विशेषतया टीका ग्रंथो में प्राप्त गद्य से अधिक सुबोध है, टीका ग्रंथों की भाषा तो ऐसी लद्धड़ है कि मूल भले समझ में आ जाय पर टीका समझ में ही नहीं आती। शिवलाल
ये विनयचंद के गुरु भाई पन्नालाल के शिष्य थे। इन दोनों गुरु भाइयों के गुरु अनोपचंद थे। विनयचंद भी अच्छे कवि थे। उनका वर्णन यथा स्थान किया जा चुका हैं। शिवलाल ने नागसी चौढालिया सं० १८७७ और सीता बनवास सं० १८८२ बीकानेर, की रचना की।३९० मो०८० देसाई ने सीता बनवास का नाम राम लक्ष्मण सीता बनवास चौपाई (सं० १८८२ माघ कृष्ण १, बीकानेर) बताया हैं जै०गु०क० के प्रथम संस्करण में रचनाकाल १८९३ बताया गया था; वह प्रति का लेखन काल होगा। नवीन संस्करण के संपादक ने उसे सुधार कर रचनाकाल कवि के अर्न्तसाक्ष्य के आधार पर सं० १८८२ को ठीक बताया है। अगरचंद नाहटा और जै०गु०क० नवीन संस्करण में सं० १८८२ को ही सही रचनाकाल माना गया है।३९१ शोभाचंद
इनकी रचना 'शुकराज चौ०' सं० १८८२ का केवल नामोल्लेख मो०६० देसाई ने किया है किन्तु इस रचना का विवरण-उद्धरण नहीं दिया है।३९२ श्रीलाल
आपने बंध उदय सत्ता चौ०' की रचना सं० १८८१ में की,३९३ अन्य विवरण अनुपलब्ध हैं। संपतराय
इन्होंने सं० १८५४ में 'ज्ञान सूर्योदय नाटक' (छंद वद्ध)३९४ की रचना की। गद्य विकास के प्रारंभिक काल में नाटक रचना का महत्त्व ऐतिहासिक है, परंतु खेद है
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