SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२२ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रचनाकाल- बरस नंद मुनि नाग धरणि मिता, द्वितीयाश्विन मन भाया, धवल पक्ष पंचमि तिथि शनि युत, पुर जय नगर सुहाया। अंत- सलिल चंदन पुष्प फल ब्रजै सुविलाक्षत दीप सुधूप के, विविध नव्य मधु प्रवरानकै जिनममीभिरहं वसुभिर्यजे।३८५ इस रचना को 'चौबीसी तथा बीशी संग्रह में सा० प्रेमचंद केवलदास ने सं० १९३५, सन् १८७९ में पृ० ५७३-५८८ पर छपवाया। आपकी एक गद्य रचना ‘मत खंडन निवाद' सं० १८४१ का उल्लेख कामता प्रसाद जैन ने किया है किन्तु गद्य का उद्धरण नहीं दिया है।३८६ इन्होंने समेतशिखर तथा सीमंधर स्तवन आदि मरुगुर्जर रचनाओं के अलावा संस्कृत में पधुमलीला प्रकाश और भावना प्रकाश आदि लिखा है।३८७ शिवचंद || - इन्होंने चारण शैली में मूलराज रावल की प्रशंसा में 'समुद्रबद्ध काव्य वचनिका' सं० १८५१ जैसलमेर में लिखा। इसके पद्य और गद्य का उदाहरण आगे दिया जा रहा हैदोहा- "शुभाकार कौशिक त्रिदिव, अंतरिच्छ दिनकार, महाराज इन घर तपौ, मूलराज छत्रधार।" गद्य का नमूना "अरुण अर्थ तेस जैसे शुभाकार कहि है भलो हे आकार जिनको ऐसे, कौशिक कहिये इन्द्र सो, त्रिदिव कहिये स्वर्ग में प्रतपै। पुनः दिनकर अंतरिच्छ कहता जितने ताईं सूर्य आकाश में तपै, महाराज कहतां इन रीतै छत्र के धरनहार महाराज श्री मूलराज। घर तपो, कहिये पृथ्वी विषै प्रतयौ।" यह गद्य काफी अस्पष्ट है किन्तु प्राचीन है।३८८ इन्होंने संस्कृत में विंशति पद प्रकाश और मौन एकादशी व्याख्यान आदि लिखा है। नाहटा ने 'मूलराज गुण वर्णन' नामक रचना का रचनाकाल सं० १८६१ बताया है और उसे शिवचंद्र की प्रथम रचना बताया है। लगता है कि मूलराज वर्णन और समुद्र वद्ध काव्य वचनिका परस्पर संवद्ध रचनायें है। दोनों नाम एक ही रचना का हो सकता है। १. शिवजी लाल इनका वंश परिचय और गुरु परंपरा आदि इतिवृत्त अज्ञात है। इनकी तीन गद्य रचनायें उपलब्ध हैं- दर्शन सार भाषा, चर्चासार भाषा और प्रतिष्ठा सार भाषा। दर्शन सार भाषा की रचना जयपुर में सं० १९२३ में पूर्ण हुई थी। विक्रम की बीसवी शती में लिखित यह रचना पुरानी हिन्दी में लिखित है। इनके गद्य का नमूना इसलिए दिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy