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शिवचंद।
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सिद्धाचल गिरनार संघ स्तवन पांच ढाल सन् १९०५ माह शुल्क १५ बुद्धवार; इनकी अधिकांश कृतियाँ पूजा, स्तवन, चैत्र वंदन तथा संघ यात्रादि पर आधारित हैं जैसे संघवण हरकुंवर सिद्ध क्षेत्र स्तवन (१९०८) इत्यादि। इनके अलावा आपने नेमिनाथ राजिमती बारमास, हित शिक्षा छत्रीसी, छप्पन दिक कुमारी रास और गद्य में प्रश्नोत्तर चिंतामणि तथा संझाय, स्तवन, हुण्डी और अन्य विधाओं में नाना छोटी-मोटी रचनायें की है। सबका वर्णन करने के लिए एक अलग पुस्तक की अपेक्षा होगी। यहाँ इस संक्षिप्त परिचय द्वारा यह बतलाने का प्रयत्न किया गया है कि वीर विजय १९वीं २०वीं शती के महान जैन लेखकों में महत्त्वपूर्ण स्थान के अधिकारी हैं। इन्होंने नाना विषयों पर विविध विधाओं में सरस, शुष्क; मनोरंजक और उपदेश परक सभी तरह की सकैडो रचनायें की है।३८४ शिवचंद | -
____ इनका पूर्वनाम शंभुराम था, इन्होंने संस्कृत, हिन्दी में अनेक रचनायें की है इनकी गुरु परंपरा निम्नवत् है
ये खरतरगच्छीयक्षेमकीर्ति शाखा के विद्वान् रुपचंद > पुण्यशील > समयसुंदर के शिष्य थे। इन्होंने नंदीश्वर पूजा, वीश स्थानक पूजा (सं० १८७१, भाद्र कृष्ण १०, अजीमगंज) और २१ प्रकारी पूजा (अक विंशति विधान जिनेन्द्र पूजा) सं० १८७८ माघ शुक्ल ५ रविवार) आदि पूजा संबंधी पुस्तकें लिखी। तीसरी पूजा का उद्धरण आगे दिया जा रहा हैआदि- मंगल हरिचंदन रुचिर, नंदन विपिन उदार,
बामानंदन पद पदम, बंदन करि जयकार। रचनाकाल- वरस नाग रिषी बसु धरणी मित, सकल संघ सुख पावै,
माघ मास सित पंचमी दिनकर, वासर सहु दिन रावै।
इसमें खरतरपति जिनचंद, जिनहर्ष के अनंतर क्षेम कीर्ति शाखा के रुपचंद पुण्यशील और समयसुंदर गणि का वंदन किया गया है। अंत- समरण करि जिन गुरु को वलि, तसु चरण कमल सुपसावै;
पूजा रची पाठक शिव चंदै परमानंद बधावै।
ऋषि मंडल पूजा अथवा चतुर्विंशति जिन पूजा (सं० १८७९ बीजा आसो द्वितीय आषाढ़ शुक्ल पंचमी, शनिवार, जयनगर) का प्रारंभ देखिए
प्रणमी श्री पारस विमल, चरण कमल सुखदाय, ऋषि मंडल पूजन रचूं, वर विधियुत चित लाय।
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