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सरसुति - सुजाण
थी। रचनाकाल इन पंक्तियों के आधार पर दिया गया है—
संमत अठारे से जांण अट्ठाणु के मास में फागुन सुद शुभ तिथ सातम बीकानेर में, ग्रंथ रच्यो सुखदाय सद्गुरु ना परसाद थी; वलभ लगसी अह जो गासे कंठ राग थी।
इसका आदि निम्नवत है
प्रथम नमी भगवंत ने गणधर गोतम सांम, गुरुचरण नित ससेता, बाधे अधिकी मांग | मदनसेन कुमार भलो पुन्ये लीला भोग, किम पामी लच्छी तणि तेहनो सहु संजोग । ४०६
देसाई ने सती विवरण चौढ़ालिया (सं० १९०७ चैत्र शुक्ल ७, लश्कर ) का नामोल्लेख मात्र किया है
साहिबराम पाटनी -
इनकी रचना 'तत्त्वार्थ सूत्र भाषा' (हिन्दी पद्य, जैन सिद्धांत सं० १८१८) से इनका वंश परिचय इस प्रकार है- ये बूँदी निवासी वैश्य थे और गोत्र पाटनी था। ये जैन धर्मावलंबी थे और वाणिज्य व्यापार करते थे, यथा
सुजाण -
है अजाना जिन आश्रमी वर्ण वनिक व्यवहार, गोत पाटनी वंश गिरि है बूंदी आगार |
रचनाकाल इन पंक्तियों में दिया गया है—
वसुदश शत परि दसरु वसु माघ विंशति गुणग्राम, ग्रंथ रच्यो गुरुजन कृपा सेवक साहिब राम ।
इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ निम्नांकित हैं
सुमरण करि गुरुदेव द्वादशांग वाणी प्रणमि, सुरग मुक्ति मगमेव, सूत्र शब्द भाषा कही । पूर्वंकृत मुनि राय, लिखी विविध विधि वचनिका, तिनहुं अर्थ समुदाय लिख्यौ, अंत न लख्यो परै । ४०
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आप लोकागच्छ के ऋषि भीम के शिष्य थे। रचना का नाम है 'शियल संञ्झाय
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