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________________ २०६ इसमें एक जगह रचनाकाल सं० १८२७ दिया है जैसा ऊपर उद्धृत पंक्तियों से भी स्पष्ट है किन्तु अन्यत्र रचना काल सं० १८२० फागुन वदी सप्तमी दिया है। लगता है लेखन या लिपि वांचने की भूल से ऐसा हुआ है। हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गोत पाटनी है मनिराय, विजयकीर्ति भट्टारक थाय । तसु पटधारी श्री मुनि जानि, बड़ज्यात्या तसु गोत्र पिछानि । त्रिलोकेन्द्र कीर्ति रिषराज, नित प्रति साधय आतम काज विजय मुनि शिष्य दुतिय सुजांण, श्री वैराड देश तसु आण धर्म्मचंद भट्टारक नाम, ढोल्या गोत वण्यो अभिराम । मलयखंड सिंहासन सही, कारंजय पट सोभा लही । ३६५ विजयनाथ माथुर - ये टोडा नगर के निवासी थे। इन्होंने जयपुर के दीवान श्री जयचंद के सुपुत्र कृपाराम और ज्ञान जी की इच्छानुसार सं० १८६१ में भ० सकलकीर्ति कृत 'वर्द्धमान पुराण' का हिन्दी पद्यानुवाद किया। कवि ने अपना परिचय निम्न पंक्तियों में दिया है आदि - Jain Education International वासी टोडे नगर को माथुर जाति प्रवीन; पुण्य उदय तासौ तहां, यह हुक्म जौ कीन | X X X भाषा रच्यो बनाय, वर्द्धमान X X पुरान विजयलक्ष्मी सूरि ये तपागच्छ के आचार्य विजयसौभाग्य सूरि के पट्टधर थे। तपागच्छ के हीरविजय सूरि के पट्टधर विजयसेन सूरि के पट्ट पर तीन आचार्य विजयदेव, विजयतिलक और राजसागर हुए । विजयतिलक सूरि के पट्टधर विजयानंद सूरि थे । इनके फिर तीन आचार्य विजय सौभाग्य, विजयराज और रत्नविजय हुए। विजयसौभाग्य के पट्टधर शिष्य विजयलक्ष्मी सूरि थे। इन्होंने संस्कृत में 'उपदेश प्रासाद' (वृत्ति सहित) सं० १८४३ में लिखा था, इनकी हिन्दी में भी कई रचनायें अपलब्ध है जिनका विवरण आगे दिया जा रहा है रचना X की । ३६६ ज्ञानदर्शन चरित्र संवाद रुप वीर स्तव (८ ढाल, सं० १८२७) श्री इन्द्रादिक भाव थी प्रणमें जग गुरु पाय; प्रभु वीर जिणंद ने, नमतां अति सुख थाय । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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