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________________ लालजीत - बसतो वस्तो २०३ शुकल पंचमी गुरुवारे, तवन रच्यू छे त्यारे रे। पंडित देव सोभागी बुध लावण्य रतन सोभागी तिणे नाम रे, बुध लावण्य लिओ सुख संपूर्ण, श्री संघ ने कोड कल्याण रे।३५८ यह रचना चैत्य आदि संञ्झाय भाग १ में और जिनेन्द्र भक्ति प्रकाश तथा देव वंदन माला नवस्मरण संग्रह में प्रकाशित हैं। 'पंडित 'देव' सोभागी बुध लावण्य रतन सोभागी तिणे नामे रे' पंक्ति में लावण्य रतन के स्थान रतन सौभाग्य होना उचित प्रतीत होता है। इस रचना के अलावा आपकी किसी अन्य रचना का पता न होने के कारण किसी अन्य सूत्र से कवि की गुरुपरंपरा का निर्धारण करना संभव नहीं हो पाया है। अत: इस पंक्ति से भ्रम उत्पन्न होना स्वाभाविक है। वल्लभविजय तपा० शांतिविजय; सुजाणविजय; हितविजय के शिष्य थे। इनकी रचना 'स्थूलिभद्र चरित्र बालावबोध' (सं० १८६४ ज्येष्ठ शुक्ल ६) जयानंद सूरि कृत मूल कृति स्थूलिभद्र चरित्र की गद्य टीका है। मूल रचना की प्रति-पुष्पिका इस प्रकार है' भ० विजयदयासूरि शिष्य मुक्तिविजय-डुंगरविजय,३५९ विवेक गणि, सं० १८६३ प्रभावती नगरे सामला पार्श्वनाथ। बसतो या वस्तो - वढ़वाण के स्थानकवासी श्रावक थे। आपकी माता का नाम नाथी और पिता का नाम नाथू था। वसतो के मन में परिस्थिति के प्रभाव से जीव दया का भाव उमड़ा और पचखाण व्रत किया, तत्पश्चात् दीक्षित होकर यशस्वी तपसी हो गये। इनके चमत्कार की अनेक कथायें प्रचलित है। इनकी लोकप्रिय रचना है जूठा तपसीनो सलोको (९१ कड़ी, सं० १८३६ भाद्र शुक्ल १०, रविवार) आदि- परथम समरूं हूं बीतराग स्वामी, जिन मारग ना छो अंतरजामी वीर प्रभु ना लेसुं वली नाम; शीस नवाभी करुं प्रणाम। अंत- जुठा तपसीनी जोड़ जे कैंशे, जुगो जुग ते अमर रहेसे। कर जोड़ी ने सेवक कहेछे, कहेनारो वास वढ़वाण रहे छो। रचनाकाल- संवत अठार छत्रीसी सार, भादरवा सुद दशम ने आदितवार। पूरी जोड़ तो हई निरधार, सुणतां भणतां थाय जयजयकार। आछो अधिको विपरीत जेहं, मिच्छामि दुक्कड़ दऊं छु तेह। ओ जोड़ तो वणिक वस्तो कहे, जुठानों नाम ते जगोजग रहे।"३६० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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