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________________ २०२ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अन्य लालचंद सांगानेरी को बताते है । हो सकता है कि दोनों भिन्न लेखक हो । अनेक लालचंद और उनकी रचनाओं में इतना घालमेल हो गया है, कि इस विषय में स्वतंत्र अध्ययन की आवश्यकता है। लालजीत आपका कोई इतिवृत्त ज्ञात नहीं है। आपकी एक रचना 'अकृत्रिम जिन चैत्यालय पूजा' (हिन्दी पद्य, सं० १८७० कार्तिक शुक्ल १२) का उल्लेख मिलता है पर अन्य विवरण उद्धरण अनुपलब्ध है । ३५५ लालविजय आप दर्शनविजय के प्रशिष्य एवं मानविजय के शिष्य थे। इन्होंने इलाकुमार रास (३२३ गाथा, सं० १८८१ आसो शुक्ल १५ ) की रचना की। इसकी अंतिम पंक्तियाँ निम्नांकित हैं रचनाकाल - संवत शशि नाग सिद्धि चंद्रो रे आसु मास । लालविनोद आपकी रचना ‘नेमिचारमासा' का देसाई ने जैन गुर्जर कवियों में उल्लेख किया है किन्तु कोई उद्धरण या विवरण आदि नहीं दिया है । ३५७ लावण्यसौभाग्य शुक्ल पक्ष तिथी पूरणिमा रे लाल, पूरण कीधो रास । दरसण विजे पंडित दीपता रे लाल, मानविजय मुनिराई । लाल कहे भाव राख जो रे लाल, तउ सुगती नां सुख थाइ । ३५६ आपके प्रगुरु थे देव सौभाग्य और गुरु थे रत्न सौभाग्य। आपने 'अष्टमी स्तव' (सं० १८३९ आसो शुक्ल ५, गुरुवार, खंभात) की रचना की है जिसका प्रारंभ इन पंक्तियों से हुआ है अंत— खंभात वंदर अतीव मनोहर, जिण प्रासाद घणा सोहइ रे, बिंब संस्थानों पार न लेखूं, दरिसण करी मन मोहइ रे । रचनाकाल — संवत अठार ओगण चालीसा वरषे, अश्विन मास उदारो रे । Jain Education International पंच तीरथ प्रणमुं सदा, समरी सारद माय; अष्टमी तबन हरषें रचुं सुगुरु चरण पसाय । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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