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________________ लालचंद III - पांडे लालचंद अग्रवाल वर वंश विषै उत्पत्ति लही । ब्रह्म उदधि कौ शिष्य फुनि पांडे लाल अग्यांन; तव भाषा रचना विषै कीनौं हम उपयोग, पै सहाय बिन होय नही तबहि मिल्यो इक योग, नंदन शोभाचंद कौ नथमल अति गुनवान, गोत विलाला गगन में उदयो चंद समान । नगर आगरौ तज रहे हीरापुर में आय; करत देखि इस ग्रंथ को कीनो अधिक सहाय । इनकी कविता सरस और ललित है । कवि ने स्त्रियों, मुनियों आदि का बड़ा विम्बात्मक वर्णन किया है। स्त्रियों का वर्णन देखिये रुप की निधान गुनखानि नर नारी जहाँ, चंचल कुरंग सम लोचन वरति है; उन्नत कठोर कुच जुग पै उमंग भरी, सुंदर जवाहर को हार पहिरति है । लाज के समाज षची विधने सवारि रची, सील भार लिये ऐसे सोभा सरसति हैं । तारा ग्रह नखत की माला वेस धरि मानों, मेरु गिरि सिषर की हांसी जे करति है । मुनिवर्णन का भी एक नमूना देखें २०१ श्री मुनिवर जिहि देस विषै अति शोभा धारत, तप कर छीन शरीर शुद्ध निजरुप विचारत । भव भव मै अघ भार किये जे संचय जग में, देषत ही ते दूरि करत भविजन के छन में । इन वर्णनों के आधार पर इन्हें प्रतिभावान कवि मानना उपयुक्त लगता है। ये देश, काल और व्यक्ति का मनोहर वर्णन करने में कुशल थे। इनकी अन्य रचनाओं में षटकर्मोपदेश रत्नमाला सं० १८१८, विमलनाथ पुराण, शिखर विलास, सम्यक्तव कौमुदी और आगम शतक आदि उल्लेखनीय है । ३५२ नाथूराम प्रेमी ने लालचंद सांगानेरी को वरांग चरित्र का लेखक बताया है । ३५३ बहुत संभव है कि लालचंद पांडे और लालचंद सांगानेरी एक ही व्यक्ति हों और उनकी रचना 'वरांग चरित्र भाषा' किसी मूल वरांग चरित्र पर आधारित हो । विमलनाथ पुराण भाषा का उल्लेख कासलीवाल ने भी किया है । ३५४ नाथूराम प्रेमी इस ग्रंथ का कर्ता किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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