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________________ २०० लालचंद ||| इनका जन्म कातरदा (कोटा) नामक ग्राम में हुआ था। ये कोटा परंपरा के आचार्य दौलतराम जी महाराज के शिष्य थे। ये कुशल चित्रकार, विद्वान, कवि, तपस्वी और शासन प्रभावक संत थे। कोटा, बूंदी, झालावाड़, सवाई माधोपुर, टोक आदि इनके विहार स्थान थे। मीणा लोगों ने इनके उपदेश से प्रभावित होकर मांस, मदिरा का त्याग कर दिया था। इनकी महावीर स्वामी चरित, जम्बूचरित, चन्दसेन राजा की चौपाई, चौबीसी, अठारह पाय के सवैये, बंकचूल चरित्र, श्रीमती का चौढालिया, विजयकुंवर का चौढालिया तथा लालचंद बावनी आदि अनेक रचनायें प्राप्त है। इनका रचनाकाल १९वीं शती का उत्तरार्द्ध है किन्तु ठीकठीक तिथि नहीं ज्ञात है और न रचनाओं से संबंधित विवरण- उद्धरण प्राप्त हो सके है । ३४८ (ऋषि) लालचंद - विजयगच्छीय भीमसागर सूरि के पट्टधर तिलकसूरि आपके गुरु थे। आपकी रचना 'अठारह नाते की कथा' का रचनाकाल सं० १८०५ माह सुदी ५ है जो निम्न उद्धरण से प्रमाणित है अंत हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास संवत अठारह पंचडोतर १८०५ जी हो माह सुदी पांचा गुरुवार, भणय मुहूरत शुभ जोग में जी हो कथण कह्यो सुविचार | Jain Education International साध सकल में सोभतो जी हो ऋषि लालचंद सुसीस; अठारा नाता चोखी कथी जी हो ढाल भणी इगतीस । ३४ | ३४९ इनकी एक अन्य रचना 'शांतिनाथ स्तवन' (सं० मिलता है परन्तु उद्धरण-विवरण नहीं मिला । ३५ पांडे लालचंद ये अटेर के रहने वाले थे। कामता प्रसाद जैन ने इनका उल्लेख लालचंद सांगा री के नाम से किया है । ३५१ ये बह्मसागर के शिष्य थे। इनकी प्रसिद्ध रचना है - ' वरांग चरित्र भाषा' जिसके निर्माण में आगरा निवासी नथमल विलाला ने भी सहायता की थी। कवि ने इस रचना में अपना परिचय इस छंद में दिया है— १८५९) का भी उल्लेख देश भदावर सहर अटेर प्रमानियै, तहाॅ विश्वभूषण भट्टारक मानियै; तिनके शिष्य प्रसिद्ध ब्रह्म सागर सही, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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