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________________ लालचंद | - लालचंद ॥ आदि- स्वस्ति श्री दायक सदा, चोतीस अतिशयवंत, प्रणमुंबे कर जोड़िने, जगनायक अरिहंत। पांचे इष्ट नमी करी धरी मन मांहि, सिद्ध चक्र नव पद तणां गुण भारवों चित्त वाहि। आगे ऊपर लिखी गुरुपरंपरा का कवि ने सादर उल्लेख किया है। अपने गुरु रत्नकुशल के लिए लालचंद ने लिखा तास सीस पाठक पद धारी, जगत जंत् उपगारी जी, रतनकुशल त्रिभुवन जयकारी, तास सीस हितकारी जी। रचनाकाल- वरस अठारह सै सैतीसे, सुदि आषाढ़ कहीसै जी, द्वितीय मंगलवार सुदीसै, मिथुन संक्रांति जगीसै जी। लालचंद निज हित संभावी, विकथा दूरै टाली जी। हेमचंद्र कृत चरित निहाली, चोपइ बंधे रसाली जी। इससे प्रकट होता है कि मूल श्रीपाल चरित के कर्ता हेमचन्द्र थे जिसका भाषांतरण चौपाई बन्ध में लालचंद ने किया है। अंत- “अक्षर मेल न होवे रुडो, पंडित जन सुध करिज्यौ जी, सैतालीसे ढालैं गुणिज्यो, मुझ ऊपरि हित करिज्यौ जी।'३४६ लालचंद || - आप दिग० संप्रदाय के भट्टारक जगत्कीर्ति के शिष्य थे। आपने 'सभ्भेदशिखर पूजा' की रचना सं० १८४२ फाल्गुन शुक्ल पंचमी को पूर्ण की। गुरु परंपरा इस प्रकार बताया है- काष्टासंघ और माथुरगच्छ पोकर गण कहो शुभगच्छ, अर्थात् काष्टासंध माथुरगच्छ के भट्टारक देवेन्द्र कीर्ति के शिष्य जगत्कीर्ति थे, यथा "तिनके पट्ट परम गुणवान, जगत्कीर्ति भट्टारक जान। शिष्य लालचंद सुधी भाषा रची बनाय, एकचित्त सुनै पढ़े भव्य शिव कू जाय।" रचनाकाल- संवत अठारा सै भयो व्यालिस ऊपर जान, पांचै फागुण शुक्ल कू, पूरण ग्रंथ बखान।"३४७ लालचंद की इस रचना-'सभ्भेद शिखर माहात्म्य' सं० १८४२ का उल्लेख ___Jain कासलीवाल ने ग्रंथ सूची भाग ४ के २५.१ पर भी किया है। www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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