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________________ रायचंद १८९ रचनाकाल- संवत अठारे से अड़तीस में जी, भाद्रवा बद इग्यारस जांण, चोमासो सहर जोधपुर में जी, जहैं रचीओ में मंडाण। दानशील तप भावना जी, शिवपुर मारग च्यार, पिण इण चोपाई मांहे अछेजी, शील-तणो अधिकार। महावीर चोढ़ालियुं (सं० १८३९, दिवाली, नागौर) का आदि सिद्धारथ कुले तु ऊपनो, त्रिशला दे थारी मात जी, बरसीदान देई करी थे, संजम लीधो जगनाथ जी। थे मत मोह्यो महावीर जी। देवकी ढाल (१८३९, नागौर), और जोबन पचीसी (१८४०, जोधपुर) अपेक्षा कृत लघु रचनायें हैं, किन्तु ऋषभ चरित्र, नर्मदासती चरित्र पर्याप्त बड़ी रचनायें हैं, इसलिए उनका उद्धरण दिया जा रहा है। ऋषभचरित्र (४७ ढाल, सं० १८४०, आसो, शुदी ५, पिपाड़) यह चरित्र आवश्यक और कल्पसूत्र से शोध कर प्रस्तुत किया गया है। इसके अंत में कवि ने लिखा रिषभ चरित्र पुरो हुवो रे, ओ सड़तालीसमी ढाल, भण्जयो गुणज्यो भाव सुं रे, बरसे मंगलमाल। रचनाकाल- संवत अठारे चालीस में रे, आसु मास अभ्यास, __शुक्ल पक्ष दिन पंचमी रे, सहिर पीपाड़ चौमास। / नर्मदा सती चौपाई (सं० १८४१ मागसर, जोधपुर)आदि- सासणनायक समरीये, मोखदायक महावीर, जेहना मुख आगल हुआ, गोतम सामि वजीर। तत्पश्चात् नेमि और राजीमती का स्मरण-वंदन किया गया है। यह कथा शीलउपदेश माला से ली गई है। यथा सील उपदेश माल ग्रंथ मैं ओ, तिण माहे विस्तार, जो भाषा रिष रायचंद जी जोड़ी जुगत सु अ, लेई ग्रंथनि सार x x x x x x x ओ अठवीसभी ढाल सुहावंणी अ, सहूं हुवो पूर्ण संबंध, सील थकी सुलसा सती अ, सीले सदा आणंद। नर्मदा सती की कथा के माध्यम से शील का महत्त्व दर्शित करने के लिए यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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