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रचना की गई थी। इसका रचनाकाल इस प्रकार है
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
नंदन मणियार चौपाई (नागौर), चेतन प्राणी संञ्झय (४ ढाल), कृपण पचीसी (जोधपुर), कपट पचीसी (मेड़ता ) और अन्य संञ्झय आदि लघु रचनाओं की संख्या काफी बड़ी है। इस विस्तृत रचना परिवार से प्रकट होता है कि आप लोकगच्छ के १९वीं शती के लेखकों में अग्रगण्य लेखक हैं। छोटी-छोटी तमाम रचनायें जैसे शिवपुर नगर सञ्झय, गौतम स्वामी संञ्झय, मरुदेवी संञ्झाय (प्रकाशित) और अनेक संञ्झय आपने लिखें हैं जिनमे से कई प्रकाशित भी हैं । ३३२
संमत अठारे इगतालीस में अ, सैर जोधपुर चोमास, भास मागसर संपूर्ण करी अ, चित्त चोखे लील विलास । "
इन्हीं रायचंद ऋषि की रचना 'उपदेश वीसी' भी होगी जिसे कस्तूरचंद कासलीवाल ने रामचंद ऋषि के नाम से बताया था। यह नाम छापे की अशुद्धि के कारण भी हो सकता है। श्री अगरचंद नाहटा ने आपकी प्राय: पचास रचनाओं की सूची संवत् और रचनास्थान के उल्लेख के साथ किया है जिनमें चेलणा चौढालियु, सुगुरु पचीसी आदि कई महत्त्वपूर्ण कृतियों का उल्लेख है।
रुप
सं० १८१७ से १८५९ तक इनका लेखनकार्य सतत् चलता रहा और इस अवधि में आपने पचासों रचनायें की । ३३३ नाहटा जी ने इनके इतिवृत्त की सूचना भी दी है। तदनुसार इनका जन्म सं० १७९६, जोधपुर में हुआ। इनके पिता का नाम विजयचंद धाड़ीवाल और माता का नाम नंदा देवी था। ये सं० १८१४ में जैमल जी से पीपाड़ में दीक्षित हुए। सं० १८६१ में रोहित गाँव में इनका स्वर्गवास हुआ था। आप अपने समय के प्रख्यात आचार्य एवं कवि थे। इनकी प्राय: दो सौ रचनायें प्राप्त हैं। केवल पचीसी संज्ञक रचनाओं की संख्या ही पचीसो हैं जैसे वय पचीसी, जोबन पचीसी, ज्ञान पचीसी, निंदक पचीसी इत्यादि। इनका काव्य लोकभूमि पर आश्रित है और उसमें सांस्कृतिक गरिमा के सरस चित्र बड़ी कुशलता से उकेरे गये हैं। इस परिचय के आधार पर ऋषि रायचंद को लोकगच्छीय कवियों में १९वीं शती का श्रेष्ठतम कवि कहा जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी। इनसे पूर्व १८वीं शती में दो रायचंद नामक लेखक हो गये हैं तीसरे रायचंद, सीता चरित्र के कर्त्ता हैं। नागरी प्रचारणी को खोज रिपोर्ट १२ भाग में इस रचना की एक प्रति का विवरण है। चौथे रायचंद को महात्मा गांधी अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। उन्होंने अध्यात्म सिद्धि की रचना की है। इनसे भिन्न प्रस्तुत रायचंद जी महान साधक और लेखक थे।
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ये नागोरी लोकागच्छ के लेखक थे। इन्होंने सं० १८८८ माघ शुक्ल १५
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