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रचनाकाल
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
यह रचना जैन विविधि ढाल संग्रह के पृष्ठ ९-२० पर प्रकाशित है । चित्त समाधि पंचवीसी अथवा संञ्झाय (१८३३ मेड़ता ), यह कृति दशाश्रुत स्कंध पर आधारित है। रचना वही है जो ऊपर लिखा गया है। यह रचना जैन सञ्झाय माला भाग २ और (अन्यत्र से भी प्रकाशित है। लोभ पचीसी (सं० १८३४ आसो, वदी, बीकानेर); यह भी जैन सञ्झाय संग्रह और अन्यत्र से भी प्रकाशित है। यह जैन संञ्झाय माला भाग २ में भी प्रकाशित है।
संवत अठारे ओक बीस में राढ़ जोधाड़ो मझार हो, फागुण बदकम् दिन रे, सुता जैजैकार हो ।
ज्ञानपचीसी (सं० १८३५ जोधपुर ) यह भी उपर्युक्त दोनों संञ्झाय संग्रहों में प्रकाशित है।
आदि
आषाढ़मूति चोढालियु अथवा पंचाढालिय (सं० १८३६ आसो, १० नागोर, उत्तराध्ययन में आषाढ़भूति की कथा आई है, उसी कथा संग्रह पर यह रचना आधारित है, इसका रचना काल इन पंक्तियों में दिया गया है
संवत् १८३६ में लाल, आसो जब दसम दिन हो, राखे समकित भलो रे लाल, जग में जाणों धन हो ।
यह जैन स्वाध्याय मंगल माला भाग २ और जैन संञ्झाय संग्रह में प्रकाशित है। कलावती चौपाई (सं० १८३७, आसो सुदी पंचमी, मेड़ता )
जुग बाहु जिन जगत गुरु, प्रणमुं जेहना पांय, शील तणी महिमा कहूं, चरित्र सुणों चित्तलाय |
इसमें कलावती के शीलवान चरित्र का चित्रण मार्मिक कथा के आधार पर प्रस्तुत किया गया है। रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है -
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संवत् अठारे सेतीस में जो, कीयो आसोज मास अभ्यास, प्रसिद्ध पांचम धानणी जी, मेडते नगर चोमास ।
मृगांकलेखा चरित्र या चौपाई (६२ ढाल सं १८३८, भाद्र कृष्ण ११, जोधपुर); शील तरंगिणी सूत्र में मृगलेखा का उल्लेख है, उसी के अनुसार यह चरित्र चित्रण किया गया है। गुरु परंपरा से संबंधित ये पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
पुज मूधर जी रा पाठवी जी, ज्यारो शिष्य ऋषि रायचंद, मृगलेखा जी जोड़ी चौपड़ जी, भाषा सरस संबंध।
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