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________________ १८७ रामपाल - रायचंद लिखित पं० रामलाल स्वहस्तेण।३२९ रामविजय | - आप तपागच्छीय रंगविजय के शिष्य थे। आपने जिनकीर्ति सूरि कृत 'धन्यचरित्र' (दान कल्पद्रुम, पर टव्वा अथवा स्तवक) की रचना सं० १८३५ में की। इसके गद्य का नमूना नहीं प्राप्त हुआ। संस्कृत में रचना का विवरण इस प्रकार दिया गया है सूरि: श्री विजयादिधर्म सुगुरो प्राप्य प्रसादं परं, संवत्यग्नि गुणाष्ट भूमि प्रमिते धन्यस्य शालिकथा, विचारोत्र धरो विदग्ध चतुरः श्री रंगरंग कवि, स्तत्पादाबुज रेख रामविजयैः स्वस्टष्टबोऽयं कृतः।३३० रामविजय || - आप १८वीं और १९वीं शती की संधिबेला के कवि हैं अत: पूर्व योजनानुसार इनका उल्लेख इस ग्रंथ के तृतीय भाग३३१ में किया जा चुका है। वैसे, इनकी कुछ ही रचनायें १८वीं शती की हैं जैसे भतृहरिशतक त्रय बाला० १७८८, अमरशतक बाला० १७९१; इनकी अन्य अधिकतर रचनायें १९ वीं शती में रचित हैं जिनमें भक्तामर टव्वा १८११, हेमव्याकरण भाषा टीका १८२२, नवतत्व भाषा टीका १८२३, सत्रिपात कलिका टव्वा १८३१, दुरियर स्तोत्र टव्वा १८१३, कल्याणमंदिर स्तोत्र टव्व। १८११, मुहूर्त मणि ग्रंथ भाषा १८०१ इत्यादि।३३२ ये सभी गद्य रचनायें है। इससे विदित होता है कि ये गद्य लेखक भी उतने ही कुशल थे जितने पद्यलेखन में। आपकी पद्यवद्य रचनाओं की संख्या भी पर्याप्त है यथा चित्रसेन पद्मावती रास १८१४, आबू यात्रा स्तवन १८२१, फलोंधी पार्श्व स्तवन १८२३ और नेमिनवरसो इत्यादि। इनके आधार पर ये एक अच्छे कवि भी सिद्ध होते है। इनकी कुछ प्रमुख पद्य रचनाओं का परिचय इस ग्रंथ के तृतीय खण्ड में दिया जा चुका है, इसलिए यहाँ विस्तार की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती। रायचंद लोंकागच्छ के ऋषि जैमल के शिष्य थे। ये अच्छे लेखक थे और इनकी अनेक रचनाओं का विवरण प्राप्त है। उसका संक्षेप आगे दिया जा रहा है। चेलणा चौढालियू (सं० १८२० वैशाख शुक्ल ६; भीमरी); आठ प्रवचन माता ढाल अथवा चौपाई (सं १८२१ फाल्गुन कृष्ण १, जोधपुर) इसका प्रारंभ देखें ___ पाँच सुमति तिने गुपत, आढे प्रवचन मात, ले सुख चावो साधजी, तोष करो दिनरात। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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