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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह रचना मोतीचंद केवलचंद द्वारा सन् १९०० ई० में प्रकाशित की गई है।
डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल ने 'उपदेश बीसी' के कर्ता का नाम रामचन्द्र ऋषि लिखा है, परंतु रचना में नाम रायचन्द्र है न कि रामचंद्र। यथा
संमत अठारैनी सैने आठ वैशाख सुद कहे छै छठ,
युग जैमल जी रा प्रताप सुं, तीवरी माहे कहै छै रीष रायचन्द्र।३२८ ___इससे तो लगता है कि उपदेश बीसी के कर्ता जैमल के शिष्य ऋषि रायचन्द हैं न कि रामचन्द्र। शायद कासलीवाल जी को 'य' 'म' पाठ में भ्रम हुआ हो और रायचन्द्र को रामचन्द्र पढ़ लिया हो। ये दोनों लेखक लोंकागच्छीय ऋषि हैं पर दोनों दो रचनाकार हैं। ऋषि रायचन्द्र की रचनाओं का विवरण आगे यथास्थान दिया जा रहा है।
रामपाल
__आपने ‘सम्मेद शिखर पूजा' नामक हिन्दी पद्यबद्ध पूजा की रचना फाल्गुन शुक्ल द्वितीया, सं० १८८६ में किया। आप दिगंबर संप्रदाय के मूलसंघ गच्छ के आचार्य सकलकीर्ति के शिष्य थे। यथा
मूलसंघ मनुहार भट्टारक गुणचन्द्र जी, तस पट सोहे सार हेमचन्द्र गछपति सहो। सकलकीर्ति आचारज जी जानो, जिनके शिष्य कहे मन आनो।
रामपाल पंडित मन ल्यावै, प्रभु जी के गुण बहुविध गावे। रचनाकाल और स्थान का उल्लेख इन पंक्तियों में किया गया है
सहर प्रतापगढ़ जानो रे भाई, घोड़ा टेकचंद तिहा रह्याई। सम्मेदशिखरा की यात्रा आधे, ता दिन में पूजा रचावे। संमत अठारा सै साल में और छियासी लाय,
फागुण दुज शुभ जानिये रामपाल गुण गाय। यह रचना टेकचंद जी की सम्मेत शिखर यात्रा के अवसर पर की गई थी। यह प्रति स्वयं कवि द्वारा लिखित है, जैसा इन पंक्तियों से व्यक्त होता है
जुगादी के सुगेह में पंडित वरनान जी, रतनचंद ताकोनाम बुद्धि को विधान जी ताको मित्र रामपाल हाथ जोर कहत है, हे स्याण मोकू दीजिये जिनेन्द्र नाम लेत है।
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