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________________ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास खाँ गद्दीनशीन हुआ किन्तु उसी साल उसका तख्ता पलट कर अलीवर्दी खाँ नवाब हो गया। यह भी मुर्शिद खाँ की तरह काबिल और कुशल था। इसने भी हिन्दू-मुसलमानों में भेद भाव नहीं किया, सबको रोजगार का समान अवसर दिया। इसके अनेक इजारेदार हिन्दू सामंत थे और इस प्रथा द्वारा बंगाल में नये प्रकार के भूमिपतियों के अभिजात वर्ग का उदय हुआ। इन नवाबों ने विदेशी व्यापारिक कम्पनी और उसके अहलकारों पर नियंत्रण रखा। अलीवर्दी खाँ ने अंग्रेजों को कलकत्ता में और फ्रान्सीसियों को चन्द्रनगर में कारखानों के किलेबन्दी की इजाजत नहीं दी, लेकिन इन्हें यह गुमान था कि कोई व्यापारिक कम्पनी उनकी सत्ता के लिए खतरा नहीं हो सकती। वे यह नहीं महसूस कर सके कि ईस्ट इण्डिया कंपनी मात्र व्यापारी कंपनी नहीं बल्कि अत्यन्त विस्तारवादी, आक्रामक और उपनिवेशवादी ब्रिटिश सत्ता की प्रतिनिधि थी। इन नवाबों ने न शक्तिशाली फौज रखी और न शेष दुनिया का वास्तविक ज्ञान प्राप्त किया। कूटनीतिक क्षेत्र में भी ये अंग्रेजों की चाल नहीं समझ पाये। इसलिए सन् १७५६-५७ में ब्रिटिश कंपनी ने जब अलीवर्दी खॉ के उत्तराधिकारी सिराजुद्दौला के खिलाफ जंग का एलान कर दिया तब फूट और आंतरिक उलझनों तथा सैनिक कमजोरी के कारण नवाब हार गया और देश में ब्रिटिश कम्पनी शासन की पुख्ता नींव पड़ी। राजपूताना के रजवाड़े दिल्ली के आस-पास राजपूत राजे भी धीरे-धीरे अर्द्धस्वतंत्र और स्वतंत्र हो रहे थे। फर्रूफशियर और मुहम्मदशाह के समय आमेर और मारवाड़ के शासकों को आगरा, गुजरात और मालवा का सूबेदार बनाया गया। धीरे-धीरे यें राज्य शक्ति संवर्धन करके स्वतंत्र हो गये परन्तु दिल्ली दरबार की तरह इन राज्यों में भी पारिवारिक कलह, आन्तरिक भ्रष्टाचार और षड़यंत्र तथा पारस्परिक विश्वासघात का बोलबाला हो गया। मारवाड़ के राजा अजीत सिंह को उसके पुत्र ने ही मार डाला । इस क्षेत्र का सर्वश्रेष्ठ राजपूत शासक आमेर का राजा सवाई जयसिंह था जो १६८१ से १७४३ तक योग्यतापूर्वक आमेर पर शासन करता रहा । यह विद्वान, खगोल शास्त्री, समाज सुधारक, कुशल प्रशासक और वीर योद्धा था। इसके समय में सभी धर्मों विशेषतया जैन धर्म को राजस्थान में विकसित होने का अच्छा अवसर मिला। कालक्रम ये सभी रियासते ब्रिटिश सरकार की करद रियासते बन कर जीवित रही और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् इनका उन्मूलन हुआ। भरतपुर के जाट यह खेतिहरों की जाति है जो दिल्ली आगरा और मथुरा के आस-पास निवास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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