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________________ हि०जै० सा० की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि उत्तर भारत की प्रमुख देशी रियासतें (क) अवध का नवाब इस नवाबी की स्थापना सआदत खाँ बुरहान-उत्न मुल्क ने की थी। मुगलसम्राट ने सन् १७२२ में इसे अवध का सूबेदार बनाया था। सआदत खाँ का वारिश सफदरजंग अवध की हालात् के बारे में एक जगह कहता है कि अवध के सरदार पलक मारते ही उपद्रव खड़ा कर देते हैं और दक्कन के मराठों से अधिक खतरनाक हैं अर्थात् आन्तरिक स्थिति डावॉडोल थी, उसे किसी तरह सआदत खाँ ने सभाँला। उसने हिन्दू-मुसलमानों में भेदभाव नहीं किया। किसानों की हालत सुधारने का उपाय किया, सैनिकों को अच्छा वेतन समय से दिया और शक्ति संचय करके सन् १७३९ में मरने के समय तक वह वस्तुत: स्वतंत्र हो गया था। उसके बाद उसके भतीजे सफदरजंग को नवाबी मिली। वह १७४८ ई० में मुगलसम्राट का वजीर भी रहा। इसने न्यायपालिका में पर्याप्त सुधार किया। नौकरियों में भेदभाव नहीं किया, फलतः रियासत में अमनचैन स्थापित हुई और आर्थिक सम्पन्नता आई। सन् १७५४ में वह मर गया। ___ सन् १७५५ से अवध के नवाबों का निवासस्थान लखनऊ हुआ और यह अवध का महत्वपूर्ण नगर हो गया। यह शहर कला और साहित्य को सरंक्षण प्रदान करने में दिल्ली का प्रतिद्वन्दी बन गया। इसीलिए एक विशिष्ट लखनवी संस्कृति का विकास संभव हुआ। सफदरजंग व्यक्तिगत जीवन में संयमी, मितव्ययी और नीतिवान था; लेकिन धीरे-धीरे नवाबों में विलासिता और फिजूल खर्ची की आदत बढ़ती गई। नवाब कमजोर पड़ गये और अंतत: १८५७ में कम्पनी सरकार ने अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह को ऐय्यास और विलासी बता कर नवाबी से पदच्युत कर दिया यद्यपि वह भी कला मर्मज्ञ और साहित्य का संरक्षक था। उसके दरबारी नाटककार अमानत खाँ ने इन्दरसभा की रचना की जिसमें नवाब स्वयं 'इन्द्र' का अभिनय करता था। बंगाल के नवाब केन्द्रीय राजसत्ता की कमजोरी का फायदा उठाकर असाधारण योग्यता वाले व्यक्ति मुर्शिद कुली खाँ ने बंगाल में नवाबी की नींव डाली। इसे १७१७ में बंगाल का सूबेदार बनाया गया था। धीरे-धीरे यह मुगल सम्राट के नियंत्रण से स्वतंत्र हो गया लेकिन बादशाह के पास नजराना नियमित रूप से भेजता रहा। इसने बागी सरदारों को काब में किया और शांति स्थापित किया। सन् १७२७ में यह मरा। तत्पश्चात् इसका दामाद शुजाउद्दीन १७३९ तक वहाँ का शासक रहा। इसके बाद उसका बेटा सरफराज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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