SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इतिहास की दृष्टि से उपयोगी है, साथ ही उन्होंने समाज और संस्कृति को भी प्रभावित किया है। निजाम — इस रियासत की स्थापना निजाम-उल-मुल्क आसफजाह ने सन् १७२४ में की थी। यह सन् १७२२ से २४ के बीच मुगलसम्राट का वजीर था और सैयद बन्धुओं के वर्चस्व को कमजोर करने में प्रमुख भूमिका का निर्वाह किया था। मुहम्मदशाह का इससे प्रशासनिक प्रश्नों पर मतभेद हुआ तो यह दक़न चला गया। इसने खुलेआम स्वतंत्रता की घोषणा नहीं की किन्तु व्यवहारतः यह स्वतंत्र शासक हो गया था। सन् १७४८ में इसकी मुत्यु के पश्चात् इसके अधीनस्थ सामंत सिर उठाने लगे। कर्नाटक का सूबेदार वहाँ का नवाब बन बैठा । निजाम कभी दिल्ली दरबार का कभी मराठों का तो कभी ईस्ट इण्डिया कंपनी का पल्ला पकड़ कर नवाबी बचाए रहा। मैसूर - यहाँ के शक्तिशाली मंत्री नगाराज का तख्ता पलट कर सन् १७६१ में हैदरअली ने अपना अधिकार जमा लिया। धार्मिक सहिष्णुता, कुशल प्रशासन और वीरता के बल पर शीघ्र ही प्रजा का विश्वास भाजन हो गया। इसने एक हिन्दू को अपना दीवान बनाया। सन् १७६९ में इसने अंग्रेजी फौजों को पराजित किया। सन् १७८२ के द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध में वह मारा गया। उसका पुत्र टीपू सुल्तान भी अपने पिता के गुणों से सम्पन्न था और हिन्दू-मुसलमानों के बीच सद्भाव स्थापित करके देश की रक्षा अंग्रेजो से करने के लिए संघर्ष करता रहा। अंतत: सन् १७९९ में यह अंग्रेजों से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ। अंग्रेज टीपू को अपना खतरनाक शत्रु समझते थे। दक्षिण में अन्य कई छोटी बड़ी रियासतें थे जिनमें कालिकट, चिराक्कल, कोचीन, त्रावणकोर आदि प्रमुख थी । त्रावणकोर के राजा मार्तंड वर्मा ने डचों को परास्त किया, सामंतो को दबाया। हैदरअली ने १७६६ में आक्रमण किया और कालीकट, कोचीन तथा उत्तरी केरल को जीत लिया। त्रावणकोर राज्य का पतन हो गया । त्रावणकोर की राजधानी त्रिवेन्द्रम संस्कृत विद्या का प्रसिद्ध केन्द्र हो गया था। मलयाली साहित्य की भी इस राज्य में बड़ी तरक्की हुई। मार्तण्ड वर्मा तथा उसका उत्तराधिकारी रामवर्मा अच्छे विद्वान, कवि और संगीतज्ञ थे। रामवर्मा अंग्रेजी में धाराप्रवाह भाषण करता था और देश विदेश की गतिविधियों की जानकारी के लिए वह कलकत्ता, मद्रास और लंदन से प्रकाशित पत्र-पत्रिकायें नियमित रूप से मंगाता और पढ़ता था। तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य पर दक्षिण भारत और उत्तर भारत की देशी रियासतों का भरपूर प्रभाव पड़ा। इसलिए संक्षेप में उत्तर भारतीय देशी रियासतों की चर्चा भी लगे हाथ कर लेना युक्ति संगत होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy