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________________ १७४ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नहीं किया है इसलिए खेद है कि इनके कृतित्व का परिचय नहीं दिया जा सका।३०३ मोहन आपकी एक हिन्दी रचना 'सृष्टि शतक ना दोहा' (१६२ कड़ी) का उद्धरण उपलब्ध है जिसे आगे प्रस्तुत किया जा रहा हैआदि- धन्य कृतारथ के हियें, श्री अरिहंत सुदेव, सुगुरु बसे जिणधर्म फुन, पांच नमण नितमेव। अंत- नेमिचंद भंडारि कृत, गाथा केइक अम विधि भग-भन्ग भविक भणो, लखो लहो शिवक्षेम। षष्टीशतक प्राकृत थकी, दोधक किया सुभास। दोधक शोधक बुद्धिजन, सेवक मोहन तास।३०४ इससे ज्ञात होता है कि मूल रचना नेमिचंद भंडारी की प्राकृत में थी, उसे कवि ने हिन्दी में प्रस्तुत किया। मोहन (मोल्हा १) जीवर्षि के प्रशिष्य एवं शोभर्षि के शिष्य थें। आप गद्यलेखक थे। आपने 'अनुयोग द्वार सूत्र बाला०' की रचना की है। इसकी गद्यभाषा का नमूना नहीं उपलब्ध हो सका। जैन गुर्जर कवियों के प्रथम संस्करण में इसके कर्ता का अपर नाम 'माल्ह' दिया गया था किन्तु नवीन संस्करण के संपादक श्री कोठारी इनका मोल्हा नाम शंकास्पद मानते है। मोल्हा नामक एक अन्य कवि हो चुके हैं जिनकी रचना 'लोकनालिका द्वात्रिंश्किा बाला०' का उल्लेख अन्यत्र हो चुका है।३०५ यशः कीर्ति (भट्टारक) आपने 'चारुदत्त श्रेष्ठी रास' की रचना सं० १८७५ ज्येष्ठ शुक्ल १५ को की। इनके शिष्य खुशाल द्वारा की गई इस रचना की प्रति सं० १८७६ की अपूर्ण प्राप्त हुई है। इससे पता चला कि भट्टारक यश: कीर्ति ने यह रचना खडग प्रदेश के धूलेव गाँव स्थित आदि जिनेश्वर धाम में रहकर लिखी थी। इसमें इनकी विस्तृत गुरु परंपरा दी गई है, यथा ये “मूलसंघ बलात्कार गण भारतीगच्छ सकल कीर्ति > ज्ञानभूषण > विजय कीर्ति > शुभचन्द्र > सुमति कीर्ति > गुण कीर्ति > वादि भूषण > राम कीर्ति > पद्मनंदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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