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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नहीं किया है इसलिए खेद है कि इनके कृतित्व का परिचय नहीं दिया जा सका।३०३ मोहन
आपकी एक हिन्दी रचना 'सृष्टि शतक ना दोहा' (१६२ कड़ी) का उद्धरण उपलब्ध है जिसे आगे प्रस्तुत किया जा रहा हैआदि- धन्य कृतारथ के हियें, श्री अरिहंत सुदेव,
सुगुरु बसे जिणधर्म फुन, पांच नमण नितमेव। अंत- नेमिचंद भंडारि कृत, गाथा केइक अम
विधि भग-भन्ग भविक भणो, लखो लहो शिवक्षेम। षष्टीशतक प्राकृत थकी, दोधक किया सुभास।
दोधक शोधक बुद्धिजन, सेवक मोहन तास।३०४
इससे ज्ञात होता है कि मूल रचना नेमिचंद भंडारी की प्राकृत में थी, उसे कवि ने हिन्दी में प्रस्तुत किया। मोहन
(मोल्हा १) जीवर्षि के प्रशिष्य एवं शोभर्षि के शिष्य थें। आप गद्यलेखक थे। आपने 'अनुयोग द्वार सूत्र बाला०' की रचना की है। इसकी गद्यभाषा का नमूना नहीं उपलब्ध हो सका। जैन गुर्जर कवियों के प्रथम संस्करण में इसके कर्ता का अपर नाम 'माल्ह' दिया गया था किन्तु नवीन संस्करण के संपादक श्री कोठारी इनका मोल्हा नाम शंकास्पद मानते है। मोल्हा नामक एक अन्य कवि हो चुके हैं जिनकी रचना 'लोकनालिका द्वात्रिंश्किा बाला०' का उल्लेख अन्यत्र हो चुका है।३०५ यशः कीर्ति (भट्टारक)
आपने 'चारुदत्त श्रेष्ठी रास' की रचना सं० १८७५ ज्येष्ठ शुक्ल १५ को की। इनके शिष्य खुशाल द्वारा की गई इस रचना की प्रति सं० १८७६ की अपूर्ण प्राप्त हुई है। इससे पता चला कि भट्टारक यश: कीर्ति ने यह रचना खडग प्रदेश के धूलेव गाँव स्थित आदि जिनेश्वर धाम में रहकर लिखी थी। इसमें इनकी विस्तृत गुरु परंपरा दी गई है, यथा
ये “मूलसंघ बलात्कार गण भारतीगच्छ सकल कीर्ति > ज्ञानभूषण > विजय कीर्ति > शुभचन्द्र > सुमति कीर्ति > गुण कीर्ति > वादि भूषण > राम कीर्ति > पद्मनंदि
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