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मालसिंह - मेघविजय
१७३ __आप लोकागच्छीय साधु जगजीवन के शिष्य थे। आपकी दो कृतियों का परिचय आगे प्रस्तुत किया जा रहा है
'ज्ञान पंचमी स्तव' (५ ढाल, सं० १८३० चौमासा, वीरमगाम) आदि- श्री चउबीसें जिन नमी, नवविधि सिद्धि ज्ञनदातार,
कातिक शुदि सोभाग्य पंचमी, जेहनूं शास्त्रे वांण।
तेह तणा गुण लेस कहुं, विस्तर शास्त्र थी जांण। कलश- लूंकागच्छे प्रवर प्रभाकर रूप जीव जी गणधरो,
तस परंपरायें गुजराती गच्छे जगजीवन जी मनधरो। तस शिष्य गणी मेघराज जपे वीरमगाम रही चोमास अ,
संवत अठार त्रीसे संवच्छर संघ ने हरख उल्लाश ।
आपकी दूसरी रचना 'पार्श्वजिन स्तवन' (९ कड़ी, सं० १८४१) है, उसका आदि और अंत इस प्रकार हैआदि- पास जिनेसर बीनवू रे लाल, वीनतडी अवधार, अंत- संवत् अठार अकेताल में रे लाल, रही चोमास शुभ काज रे।
कहे पूज्य जगजीवन तणो रे लाल, शिष्य गणी मेघराज रे।३०१ मेघविजय
आप रंगविजय के शिष्य थे। आपने 'गोडी पार्श्वनाथ स्तव' अथवा मेघ काजल संवाद नु स्तवन सं० १८५७ से कुछ पूर्व लिखा था क्योंकि उक्त संवत् की लिखी हस्तप्रति प्राप्त है। जैनगुर्जर कवियों के प्रथम संस्करण में देसाई जी ने इस कृति का कर्ता रंगविजय के शिष्य नेमविजय को बताया था। इसलिए इनका विवरण नेमविजय की अन्य रचनाओं के साथ यथास्थान दिया जा चुका है।३०२ हो सकता है कि मेघविजय के स्थान पर भूल से नेमविजय लिख दिया गया हो। जो हो, कृति का परिचय दोनों स्थानों पर ठीक है, शंका केवल कर्ता के संबंध में है। नामों में हेरफेर होना संभव है, यह शोध का विषय है। मोतीचंद (यति)
आप जोधपुर नरेश मानसिंह के सभारत्नों में थे। महाराज ने इन्हें जगद्गुरु भट्टारक की पदवी प्रदान की थी। आप हिन्दी के अच्छे कवि थे। इतनी प्रशंसा तो कामता प्रसाद जैन ने इनकी की है किन्तु एक भी रचना का विवरण-उद्धरण कौन कहे नामोल्लेख तक
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