SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४४ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास का विवेचन, संसार की नश्वरता, दया, प्रेम, मैत्री, करुणा, अहिंसा आदि का प्रतिपादन किया है।२३९ पासो पटेल आप संत जीवा के श्रावक शिष्य थे। ये लोका० धर्मदास; मूलचंद; बना; जीवा के शिष्य थे। रचना-भरतचक्रवर्ती रास (२० ढाल सं० १८१८ चैत्र बदी अमावस्या, लीबंडी) आदि-- अरि हणवे अरिहंत जी, तास करी प्रणाम, सरस्वती चरण कमल नमी, समरूं गौतम स्वाम। अधिपति जे षट्षंड नो भरतेसर गुणवंत, पदम चक्री जे हुआ कीध भावना अंत। यह रचना जंबूद्वीप पन्नति पर आधारित है यथा-कलश श्री जिणवाणी शुद्ध जाणी आणी उच्छरंग भाव सुं, सूत्र जंबू द्वीप पन्नति तेह थकी भाखे इसु। xxxxx गणे गरवा भावे नरवा वैराग तप धन ना धणी, रिषि श्री धर्मदास जी जैनी की रति जेम चिंतामणी। इसके उपरांत मूलचंद, बना, जीव का वंदन किया गया है। रचनाकाल- संवत् अठारा-अठारा बरसे चैत्र वदि अमावस्या सही लीबंडी मध्ये पुरी कीधी पांसे पटेल पोसा मां सही।२४० प्रकाश सिंह आपने सं० १८७५ आषाढ़ शुक्ल ८, गोंडल में अपनी रचना 'बारव्रत ना छप्पा' पूर्ण किया। आदि- जीव दया नित पालिये, व्रत पहिलेहुं कहिये। वाणी सूक्ष्म बादर सर्व ने अभयदान ज दइये। xxxxx छ कायनी रक्षा करो कुटुंब सर्वे छे आपणो, प्रकाश संघ कहे पास जो तोष ऋतु दायापणु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy