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________________ पासो पटेल - प्रेम मुनि १४५ रचनाकाल- अठार सो पंचोत रोनी शुक्ल पक्षे वली, मास आसाडि सोभनो वली अष्टम दिवसे, सझाई विधि सोभती धरि मन उलासे। कहे सेवक भाव सुं बलि गोडंल वसे, हुं बांदीश, व्रत श्रावकना ने सुध समकित पालसे, प्रकाश संघ वाणी वदे मोक्ष नां सुख मालसे।२४१ प्रतापसिंह रचना ‘चन्द्रकुमार की वार्ता' हिन्दी गद्य, रचनाकाल सं० १८४१, अन्य विवरण अनुपलब्ध।२४२ प्रागदास रचना 'जंबू स्वामी की पूजा' यह भाषा छंदोबद्ध कृति है। उदाहरण- मथुरा ने पश्चिम कोस आध, छत्री पद द्वै महिमा अगाध। वृजमंडल में जे भव्य जीव, कातिग वदि रथ काढ़त सहीव, केऊ पूजित केऊ नृत्य ठानि, के गावत विधि सहित तान। निस द्यौस होत उत्सव महान, पूजत भव्यन के पुन्य थान। पद कमल प्राग तुव दास हौस, जिनभक्ति विभव दे अरज मोहि।२४३ प्रेम मुनि ये लोकागच्छ के संत वरसिंह के शिष्य थे। इन्होंने सं. १८५८ जोधपुर (कंटालिया) में हरिश्चन्द्र चौ० की रचना की।२४४ श्री मो० द० दे० ने गुरु परम्परान्तर्गत लोकगच्छीय केशव को प्रगुरु और वरसिंग को गुरु बताया है। उन्होंने हरिश्चन्द्र राजा चौ० का विवरण-उदाहरण भी दिया है, यथा- हरिश्चन्द्र राजा चौ० (२३ ढाल, सं० १८५८ मार्ग बदी ९, रविवार जोधपुर), आदि- आदि जिणेसर पाय नमू, श्री बीताराग गुण पेख। नमो-नमो सहु को नमो, जीवा जीव विशेष। X X X X X दया प्रगट कीयो दया दान दातारि, सरग मृत्यु पाताल में आप तणो-आधार। xxxx x Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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