________________
पद्मविजय
१४१
आदि- स्वस्ति श्री वर सारदा, कुंद चंद समकाय,
कमलमुखी ने कमलकर, प्रणमुं तेहना पाय। x x x x x समरादित्य सुसाधुनो चरित्र अछे सुविचित्र, हरिभद्र सूरे भाखिये वचनविचार पवित्र, अपराधी नर ऊपरि करिये नही कांय क्रोध,
तिणे से समरादित्य तणुं चरित्र सुणी सुभ बोध। रचना का प्रारंभकाल- अठार ओगण चालीस मां कायमांडयो रास अ वसे रे,
लीवंडी चौमासो रहयुं, काय दिन-दिन चढ़ते हर्षे रे। इसमें वर्धमान, सोहम् जंबू, प्रभव, शय्यंभव, यशोभद्र, संभूतिविजय, भद्रबाहु स्थूलिभद्र, आर्य सुहस्ति, कोटिकगण के इन्द्रदिन्न, चन्द्रगच्छ के चंद्रसूरि समंतभद्र, प्रद्योतन, मानदेव, मानतुंग, वीरजयदेव, देवाणंद, विक्रमसूरि आदि से लेकर जगच्चन्द्र सूरि के पश्चात् तपागच्छीय जिनेन्द्रसूरि तक का नामोल्लेख करके अंत में लिखा हैरचनाकाल- तस राज्ये ओ पूरण कीधो, अठार वेताला बरसे.
श्री कल्याण पास सुपसाये, वसंतपंचमी दिवसे रे।
गुरु परम्परान्तर्गत सत्यविजय, कपूरविजय आदि के साथ उत्तमविजय को नमन करके कवि ने लिखा है
ते गुरु उत्तमविजय पसायें, पद्मविजय लघुशीसे
वीसलनगर चौमासे रहीनें, भाख्यो विसवा वीसे रे।
इसे भीमसी माणेक, छगन लाल उमेदचंद और दौलतचंद हुकुमचंद ने प्रकाशित किया है। राजहंस विजय द्वारा संपादित संस्करण का प्रकाशन कुमुदचंद जोशीभाई बोरा ने किया है। इससे इसकी उपयोगिता और महत्ता का अनुमान किया जा सकता है। यह एक प्रकार से जैन पट्टावली का संक्षिप्त संस्करण है। 'सिद्धाचल नवाणु यात्रा पूजा अथवा नवाणु प्रकारी पूजा' सं० १८५१; यह शत्रुजंय तीर्थमाला रास अने उद्धारादिकनो संग्रह तथा वीशीओ अने विविध प्रकार नी पूजाओं में भी प्रकाशित हैं।
मदनधनदेव रास (१९ ढाल ४५९ कड़ी सं० १८५० श्रावण शुक्ल ५,रविवार, राजनगर) इसमें रागबन्धन से मुक्ति का उपदेश कथा के माध्यम से दिया गया है। उदाहरणार्थ पंक्तियाँ देखें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org