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________________ १४० वनज वहन वागेश्वरी पुस्तक दाहिण पांण, समरुं सामी सरसती, करवा गुरु निर्वाण संवत् अठार अठावीसे पोषा रुडो मास अ, सातिम दिने सूर्यवारे, पोहोती सकला आस से। यह देसाई द्वारा संपादित जैन ऐ० रासमाला भाग १ में प्रकाशित है। (षट्पर्वी महिमाधिकार गर्भित) महावीर स्तव (८ ढाल सं० १८३० फाल्गुन शुक्ल १३ साणंद; इसमें महावीर की स्तुति है। इसका रचनाकाल देखिए अठार तीस संवत्सरे, सुदि तेरस फागुण मास रे । यह जिनेन्द्र भक्ति प्रकाश और चैत्य आदि संञ्झाय भाग ३ में प्रकाशित है। २४ जिननां (अथवा सर्वजिन) कल्याणक स्तव (सं० १८३७ महा कृष्ण २, शनिवार, पाटण) का आदि रचनाकाल हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह पुस्तक जिणगुण स्तव माला में प्रकाशित है। पंचकल्याणक महोत्सव स्तव (सं० १८३७), यह जैन सत्यप्रकाश वर्ष ८ अंक पृ० २२६ पर प्रकाशित है। रचनाकाल नवपद पूजा (१८३८ सं० माह वदी २, गुरु लीवंडी) का आदिश्रुतदायक श्रुतदेवता, वंदु जिन चौबीस, गुण सिद्ध चक्र ना गावतां, जग मां होय जगीस। - प्रणमी जिन चौबीसने कहुं कल्याणक तास, मास अमावस्या तणी रीध धरी सुविलास । संवत् अठार सांत्रीस (१८३७) वां माह बद बीजने शनीवारो रे, Jain Education International गज वह्नि मद चंद संवत्सर माह वदि बीजा गुरुवारो, रही चोमासूं लीवंडी नगरे, उद्यम अह उदारो । यह रचना 'स्नात्र पूजा स्तवन संग्रह और ज्ञानपंचमी में प्रकाशित है इसी प्रकार इनकी प्रायः अधिकांश कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी है। समरादित्य केवली नो रास (९ खंड १९९ ढाल सं० १८३९ लीवंडी में प्रारंभ और सं० १८४२ वंसतपंचमी, विसनगर में पूर्ण ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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