________________
पन्नालाल - पद्मविजय
१३९ उत्तमविजय के शिष्य थे। अहमदाबाद के सामलापोल निवासी श्री माली वणिक गणेश की पत्नी झककु की कुक्षिसे सं० १७९२ भाद्र शुक्ल द्वितीया को आपका जन्म हुआ था। जन्मनाम पानानंद था। छह वर्ष की अवस्था में इनकी माता का देहांत हो गया। सं० १८०५ में उत्तमविजय से राजनगर में दीक्षित हुए। दीक्षानाम पद्मविजय पड़ा। दीक्षोपरांत आपने गहन शास्त्राभ्यास किया और तपा० विजयधर्म सूरि ने इन्हें सं० १८१० में पंडित पदवी से विभूषित किया। आपने अनेक संघयात्राओं में भाग लिया, बिंब प्रतिष्ठा कराई
और तीर्थाटन किया। सं० १८२७ में उत्तमविजय का देहावसान हुआ। उनके पश्चात् धर्म प्रभावना का कार्य इन्होंने आजीवन पूर्ण शक्ति के साथ किया।
__ सं० १८६२ चैत्र शुक्ल चतुर्थी बुधवार को इन्होंने लौकिक शरीर का त्याग किया। आपने पद्य और गद्य में अनेक रचनायें की। उनकी कुछ विशिष्ट कृतियों का संक्षिप्त परिचय आगे दिया जा रहा है'अष्ट प्रकारी पूजा' (१६ ढाल ७६ कड़ी सं० १८१९ धोधा) का आदि
श्रुतधर जस समरै सदा, श्रुतदेवी सुखकार।
प्रणमी पदकंज तेहवा, पभणुं पूजा प्रकार। रचनाकाल- तत्त्व शशी अउ चंद्र संवत्सर, खिमाविजया जिन गावो,
उत्तम पदकज पूजा करता, उत्तम पदवी पावो, रे।
यह रचना विविध पूजा संग्रह और विधि विधान साथे स्नानादि पूजा संग्रह में प्रकाशित है। नेमिनाथ रास अथवा चरित्र (४ खण्ड १६९ ढाल ५५०३ कड़ी, १८२० दीपावली, राधनपुर) इसमें आणंदविमल, विजयदान, हीरविजय, विजयसेन, विजयदेव, विजयसिंह के शिष्य सत्यविजय और उसके पश्चात् की गुरुपरम्परा का सादर उल्लेख किया गया है। रचनाकाल- गगन नयन गज चंद्र संवच्छर, दीवाली दिन जाणो। अंत- नेमचरित्र जे सुणसे लखसे वांचसे भाग्यविशाल,
अनुक्रमे शाश्वत पद ते लहस्ये होस्यें मंगलमाल। यह रचना जैन कथारत्न कोश भाग २ दो में प्रकाशित है। 'उत्तम विजय निर्वाण रास' (१३ ढाल १८२८ पौष शुक्ल ७, रविवार) इसमें कवि ने अपने गुरु को उनके निर्वाणोपरांत श्रद्धांजलि अर्पित की है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org