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________________ १३६ नहीं है। नेमिचंद पाटणी आपकी दो रचनाओं 'चतुर्विंशति तीर्थंकर पूजा (हिन्दी पद्य, रचनाकाल सं० १८८०) और 'तीन चौबीसी पूजा' (सं० १८९४) का उल्लेख डॉ० कासलीवाल ने किया है। २३३ इन रचनाओं का विवरण- उदाहरण अनुपलब्ध है। उन्नीसवी शती के उपर्युक्त तीन नेमचंद्रों में से किसी का स्पष्ट विवरण प्राप्त नहीं है। इनके अलावा १८वीं शताब्दी में देवेन्द्र कीर्ति के शिष्य प्रसिद्ध कवि नेमिचंद्र हो चुके हैं जिन्होंने नेमीश्वररास' की रचना की थी। नेमविजय हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तपागच्छीय हीरविजयसूरि की परंपरा में शुभविजय > भावविजय > सिद्धविजय > रूपविजय > कृष्णविजय रंगविजय के शिष्य थे। इनकी रचना 'थंभणो पारसनाथ, सेरीसो पार्श्वनाथ, संखेसरो पार्श्वनाथ स्तवन (२८ ढाल ३५० कड़ी सं० १८११ फाल्गुन शुक्ल १३, सोमवार) का आदि---- रचनाकाल - सरसति ने समरू सदा, महिर करे मुझ माय, बल भवियण आपे नही, दुनियां ने आवे दाय । प्रगट देव प्रथवी तलें परतापूरण पास, थभ्यां नीरजे थंभणे, वास्यां नगर निवास। सेरीसे संखेसरो नामे पारसनाथ, अ जिहुं ओक समें हुआ, सुरनर सेवें साथ। दीवानी परें दाखवे जोति करी जगमाय, वास करे मुझ मुखवली, पूजिस तोरा पांय । संवत् अठार इग्यारोतरा वरसे फागुण मास सुदि पक्खे हे, वार सोमने तिथि तेरस दिने गाया गुण में सखे है । इसमें ऊपर लिखी गुरुपरम्परा का उल्लेख किया गया है। रंगविजय को अपना गुरु बता कर अंत में कवि ने लिखा है सर्व संख्याइ गाथा कही छे साढ़ा त्रिन स्यै मांन हे, अट्ठारवीसमी ढाल ঔ भारवी, नेमविजय ओक ध्यान हे, 'गोड़ी पार्श्व स्त० अथवा काजल मेघानुं स्तव अथवा मेघाशानां ढालिया (१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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