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________________ निहालचंद - नेमचन्द्र १३५ अलि के स्वभाव ते सुगंध लीज्यौ अरथ की, हंस के स्वभाव है के गुन को गहीजियो। जै० गु० क० के नवीन संस्करण में इनका उल्लेख छूट गया है। निहालचंद अग्रवाल आपकी एक रचना 'न्यचक्र भाव प्रकाशिनी टीका या नयचक्र भाषा अपर नाम स्वमति प्रकाशिनीटीका (सं० १८६७ कृष्ण ६, शनिवार, कानपुर) का रचना विवरण देखिये सहर कानपुर के निकट कंपू फौज निवास, वहाँ बैठि टीका करी थिरता को अवकास। संवत् अष्टादस शतक ऊपरि सठसठि आन, मारग बदि षष्टी विषै वार सनीचर जान। ता दिन पूरन भयौ बड़ौ हर्ष चित्त आन, रंकै भानू निधि लइ त्यौं सुखमो उर आन२३० नेमचंद्र इस शती के तीन नेमचन्द्र का उल्लेख मिलता है, जिनका उल्लेख आगे किया जा रहा हैं। नेमचंद्र की रचना 'पंदरतिथि' १८८२ से पूर्व की है। इसके आदि और अंत की कुछ पंक्तियाँ उद्धृत की जा रही हैंआदि- नमोकार सुखकार सार मन वच तन ध्यानूं, अरहंत सिद्धन सूरि पाठिक साध मनानूं। नांव जुपत अघ षटत लहत शिव सुंदर प्यारी। अतुल अत्यंद्री अध्यत्मह सुखसंपति भारी। अविचल अखंड आनंदमय पर अतिन्द्री सुखभहें, तसु चरनकमल वंदन सदा नेमचंद्र आनंद लहे।" अंत- पंदरै तिथि ओ करी अध्यात्म रूप धरै बाई, भूल चूक कछु होइ शुद्ध करि लीज्यौ मेरे भाई। नेमचन्द्र मुनि धारि अध्यात्म सबही को त्यारन तरन, जग मांहि तरे साठ जिनधर्म भविजीव मंगलकरन।२३१ ब्रह्म नेमचंद्र इनकी रचना 'चंद्रप्रभ छंद' (सं० १८५०)२३२ का विवरण-उदाहरण प्राप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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