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________________ नेमिचंद पाटणी - नेमविजय १३७ ढाल सं० १८१७ भाद्र शुक्ल १३, सोमवार, मइयाजल) का आदि भाव धरी भजना करूं, आपे अविचल मत्त, लघुता ते गुरूता करे, तु सारद सरसत्त। यह रचना दंडकादि जैन प्राचीन स्तवनादि संग्रह में प्रकाशित हैं। 'धर्म परीक्षा रास (९ खण्ड, ११० ढाल, सं० १८२१ वैशाख शुक्ल, ५ गुरुवार बीजापुर) का रचनाकाल इस प्रकार है "संवत् अठार अकवीस मां, मास वैशाख सुदि पक्ष, तीथि पांचम गुरूवासरे, गाया गुण में रूष। बीजापुर मां विराजता वृद्ध तपा पक्षे सनूर, चंद्रगच्छ मां दीपता श्री जिनसागर सूरि। इसमें पूर्व वर्णित गुरू परम्परा दी गई है। यह रचना जिनसागर सूरि के सान्निध्य में की गई थी। यह पुस्तकाकार में भीमसी माणक और वाडी लाल वर्धमान शाह द्वारा प्रकाशित की गई है। गुरुमहिमा पर कवि की पंक्तियाँ दृष्टव्य है गुरू दीवो गुरू देवता गुरू रूठे गम होय, गुरू कहीये माता-पिता गुरू थी अधिक न कोय। धर्म परीक्षा के संबंध में कवि लिखता हैभवियण भावे संभलो धरमाधरम विचार, द्वेषबुद्धि दूरे करी परीक्षा करजो सार। उत्पति तेहनी ऊचरु धर्म परीक्षा रास, वा तो विविध प्रकार की आणी हरष उल्लास। श्रीपाल रास (४५ ढाल सं० १८२४ पौष कृष्ण ६, रविवार, बीजापुर के समीप गेरिता गाँव)। आदि- सकल जिनेश्वर सर्वदा, परमेश्वर प्रणमेव, नाम समरतां नित्य प्रति, दरसण थी सुखदेव। नामे नरनारी तर्या नवपद नामे सिद्ध, आंविल तप आराधतां श्री पाल पाम्यो रीध। यह रचना रत्नशेखर सूरि कृत श्रीपाल चरित्र पर आधारित है। रचनाकाल- संवत् अठार चौबीसा बरसे, पोस मास वद जाणो जी, छठ ने दिवसे अने रविवारे, पूरण रास परमाणो जी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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