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नवलशाह - निर्मल
द्वादश लगन प्रभात में श्री दिन लेख मनोग। रितु बसंत प्रफुल्ल अति फागु समय शुभ हीय,
वर्द्धमान भगवान गुन ग्रंथ समापित कीय। अपनी लघुता का वर्णन करता हुआ कवि कहता है
द्रव्य नवल क्षेत्र हि नवल कारन नवल है और, भाव नवल भव नवल अति, बुद्धि नवल इहि ठौर। काय नवल अरू मन नवल वचन नवल विसराम,
नव प्रकार जत नवल इह, नवल साहि करि नाम। अंत- पंच परम गुरु जुग चरण भवियन बुध गुन धाम,
कृपावंत दीजै भगति, दास नवल परनामा२२६ इनकी कविता का नमूना देखें (वीररस का उदाहरण)जुरी दोउ सैना करें युद्ध ऐना, लरै सुभट रस में प्रचारै, लरै व्याल सो व्याल रथवान रथ सों तथा कुंत सो कंत किरपान झारे। जुरै जोर जोधा मुरै नैक नाही, टरै आपने राय की पैज सारें। करें मार घमसान हलकंप हो तौ, फिरै दोय में एक नहीं कोई हारे। ज्यौं वरषा ऋतु पाय नीर सरिता बढे त्यौ रण सिधु समान रकत लहरै बढ़े। X X X X X X वीर जिन जन रचन पूजत, वीर जिन आश्रम रहै, वीर नेह विचार शिव सुघ, वीर धीरज की गहैं। वीर इन्द्रिय अघ घनेरे, वीर विजयी हौं सही।
वीर प्रभु मुझ बसहुं चित नित, वीर कर्म नसावही।२२७ निर्मल
इनकी एक रचना 'पंचाख्यान' की हस्तप्रति पंचायती मंदिर दिल्ली से प्राप्त हुई है। यह एक मूल संस्कृत ग्रंथ का पद्यानुवाद है। यह नीति ग्रंथ सर्वसाधारण के लिए उपयोगी है। इसमें न तो कवि का परिचय है और इसका रचनाकाल दिया हुआ है। चूंकि इसमें अरिहंत की स्तुति है इसलिए ये जैन कवि हैं। यह भी स्पष्ट नहीं हो सका कि यह रचना १८वीं शती के अंतिम चरण की है अथवा १९वीं शती के प्रथम चरण की है। कामता प्रसाद जैन ने इसे १९ वीं शती का बताया है। इसके प्रारम्भ की पंक्तियाँ निम्नांकित हैं
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