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________________ १३२ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास व्रत तप शम बोध सकल फल होत सत्य भक्ति मन धारत सुगुन ग्राम।" इनके पद भी गेय और प्रबोधात्मक हैं, यथा कौन भेष बनायो है, अरे जिय। मोही ज्ञान गमाई जिन गुन रूप विगारि। xxxx नयन सभारि विचारि हिये जिनराज दिये, गुन आनंद लारे सुषिया प्यास निवारि।"२२४ नवलशाह ___आप खटोला ग्राम निवासी देवराय के पुत्र थे। इनके पूर्वज भेलसी ग्राम के रहने वाले थे। वहाँ पर भीषम साह संघई ने जिनमंदिर का निर्माण कराया था। नवलशाह ने सं० १८२५ में भट्टा० सकल कीर्ति के संस्कृत ग्रंथ से कथा लेकर वर्द्धमान पुराण की छंदोवद्ध रचना की। एक नवलशाह १७वीं शताब्दि में हो गये जिन्होंने भी सं० १६९१ में वर्द्धमान पुराण भाषा की रचना की थी। इसलिए यह भ्रम होता है कि शायद रचनाकाल में भ्रमवश दो शतियों का अंतर पाठ भेद के कारण आ गया हो, किन्त पं० पन्नालाल ने नवलशाह के संबंध में लिखा है कि ये बुंदेलखंड के कवियों में श्रेष्ठ कवि थे। वर्धमान पुराण में 'महाकाव्य के लक्षण पाये जाते है। यह प्रकाशित होकर जैन भिन्न के उपहार में बाँटा गया था। ये बुंदेलखण्ड के वसवा ग्राम वासी थे। इनका समय (सं० १७९०१८५५) मुख्य रूप से १९वीं शताब्दी ही है अत: ये १७वीं शती वाले नवलशाह से निश्चय ही भिन्न है। इनका संबंध दौलतराम कासलीवाल से बताया जाता है जो १८वीं १९वीं शती के विद्वान थे। इन्होंने दोहा पच्चीसी और सैकड़ों गेय पद लिखे है।२२५ इनकी प्रमुख रचना वर्धमान पुराण का परिचय दिया जा रहा है। वर्द्धमान पुराण (१६ अधिकार, सं० १८२५) का आदि ऋषमादि महावीर प्रणमामि जगद्गुरु, श्री वर्द्धमान पुराणोऽय कथयामि अहं ब्रवीत। अंत- उज्जयंति विक्रम नृपति संवत्सर गिनि तेह, सत अठार पच्चीस अधिक समय विचारि एह। द्वादश में सूरज गिनै द्वादश अंसहि ऊन, द्वादस मौ मासहि भनौ शुक्ल पक्ष तिथि पून। द्वादश नक्षत्र बखानिये बुधवार वृद्धि जोग; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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