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धीरविजय - नयनसुखदास
१३१ नंदन शोभाचन्द्र को नथमल अति गुनवान, गोत विलाला गगन में ऊग्यो चंद समान। नगर आगरो तज रहे हीरापुर में आय, करत देखि उग्रसैन को कीनो अधिक सहाय।२१८
आप भरतपुर रियासत के खजांची हो गये थे और दरबार में बड़ा सम्मान था। आपकी कविता साधारण कोटि की है।२१९
भक्तामर स्तोत्र कथा का रचनाकाल ज्येष्ठ शुक्ल १०, सं० १८२८ ठीक लगता है।२२० नागकुमार चरित्र का रचनाकाल सं० १८३७ माह शुक्ल ५-२२१ जिन समवशरण मंगल (सं० १८२१ वैशाख शुक्ल १४);। कवि नथमल विलाला ने यह रचना कबीरचंद की सहायता से पूर्ण की थी, यथा
चंद फकीर तै मूल ग्रंथ अनुसार,
समोसरन रचना कथन भाषा कीनी सार।२२२ नयनंदन
आपने 'इरियावही भंगा' की रचना की है। इसकी प्रारंभिक पंक्ति इस प्रकार है- “इरियावही ना मिच्छामि दुक्कड़ लाख १८ सहस २४ शत १२०, जीवरा भेद ५६३, तिणरो विचारा लिखियइ छइ।" अंतिम पंक्ति
___"इरियावही ना मिच्छामि दुक्कड़ थाइ सही १८, २४, १२० जड़ावा" इति इरियानही रा भंगा।"२२३ नयनसुखदास
___ आप जैन समाज के लोकप्रिय कवियों में है। इनकी पद्य रचना प्रभावोत्पादक है। यथा
ए जिन मूरति प्यारी, राग दोष बिन, पानि लषि शांत रस की। त्रिभुवन भूति पाय सुरपति हूं, राषत चाह दरस की। कौन कथा जगवासी जन की मुनिवर निरषि हरषि चषि सुख की, अन्तरभाव विचार धारि उर, उमंगत सरित सुरस की। आध्यात्मिक भावना की प्रांजल भाषा शैली में व्यंजना का एक नमूना और देखेंतेरो ही नाम ध्यान जपि करि जिनवर मुनिजन पावत सुख धन अचल धाम।
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