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________________ १११ तत्त्वकुमार - थानसिंह > कृष्णविजय > रंगविजय > भीमविजय > हेमविजय के शिष्य थे। इनकी रचना 'केसरिया नोरास' (१६२ कड़ी, सं० १८७० फाल्गुन शुक्ल १०) का आदि इस प्रकार है सहस वचन रस सरसती, हंस वाहनी हंस गती, प्रथम ज प्रणमुं सरस्वती, मांगु अविरल मती। अंत की पंक्तियों में रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है असुर नमायो दंड पायो थावर जंगम जग जयो; जग जस वदीतो जंग जीत्यो केसरीयो कारे जयो। संवत् अठार सत्योतरा मझारे फागुण दसमी सुदवली; हेमविजय तणो तेज पभणे सर्वे मन आश्यां फली।१७९ यह रचना जैन युग पु० २ पृ० ४८१-५६३ पर प्रकाशित है। तेज विजय शिष्य तपा० तेजविजय के इस अज्ञात शिष्य ने 'नवकार रास' की रचना सं० १८५७ श्रावण शुक्ल ५ को की। इसका अन्य विवरण-उद्धरण अनुपलब्ध है।१८० त्रिलोककीर्ति आपने सं० १८३२ में 'सामयिक पाठ टीका' की रचना की है। रचना गद्य की है किन्तु इसके गद्य का नमूना नहीं मिला।१८१ थानसिंह ___ आप सांगानेर के निवासी थे। इनका परिवार ढोलिया गोत्रीय खण्डेलवाल वैश्य था। इनकी रचना का नाम 'सुबुद्धि प्रकाश' या थान विलास (सं० १८४७) है।१८२ इसमें लेखक ने आमेर, सांगानेर और जयपुर का वर्णन किया है। जयपुर में कुछ कलह-क्लेश के कारण इनके माता-पिता करौली चले गये, पर ये सांगानेर में ही रहे। इनकी दूसरी रचना 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' है। इसका रचनाकाल नाहटा ने सं० १८२४ और पहिली रचना सुबुद्धि विलास का रचनाकाल सं० १८२१ बताया है पर उन्होंने काल निर्णय संबंधी कोई प्रमाण नहीं दिया है। थान विलास इनकी कई छोटी मोटी रचनाओं का संग्रह है। हो सकता है कि उसमें सं० १८२१ से सं० १८४७ तक की रचनायें संकलित हों, रचनायें सामान्य कोटि की है। इनकी भाषा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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