________________
११०
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास राणी सही चेलणा जांणि, धर्म जैन सेवै मनि आणि। राजा धर्म चलावै बोध, जैनधर्म को काट खोध। जो झूठी मुख ते कहै अणदोस्या ते दोस; ते नर जासी नरक में, मत कोइ आणौं रोस।१७४
दोहा
तत्त्वकुमार
आप सागरचन्द्र सूरि शाखा के विद्वान दर्शनलाभ के शिष्य थे। इन्होंने 'रत्नपरीक्षा' नामक ग्रंथ की रचना सं० १८४५, राजागंज में की। इसकी भाषा स्वच्छ हिन्दी है। मरुगुर्जर में इन्होंने 'श्रीपाल चौपाई' नामक दूसरा ग्रंथ लिखा है। यह रचना प्रकाशित है।१७५ श्री नाहटा ने इनका नाम १९वीं शती के प्रमुख कवियों में गिनाया है।१७६ तत्त्वहंस
ये लोहरी पोसालगच्छीय साधु विनयहंस > रत्नहंस > राजहंस के शिष्य थे। आपकी रचना 'भुवनभानु केवली चरित्र बाला०' (सं० १८०१ फाल्गुन शुक्ल ३, शनिवार खंभात) का अपर नाम 'बलिनरेन्द्र आख्यान' भी है। मूल रचना संस्कृत की है।
___ आदि- "श्री गुरु ने नमस्कार करू छइ। अस्ति कहेता छई अहज जंबु द्वीप ने विथइ मेरु थकी पश्चिमवि दिसनइ विषइं गन्धीलावती नाम-नाम छे जेहनउ अहवी विजय ते गंधीलावती नाम विज्यनइ विषइ---- आवास छइ-संपदानो स्थानक छे समग्र जेहनउ बीजा पण विलास्यान उधरे छ।”
____ अंत- सं० १८०१ वर्षे फागुण मासे अतिशये भलो अहवो सितक शुक्ल पक्षे ३ तिथौ शनिवासरे---तेहनो टव्वार्थ ने ते पंडित तत्त्वहंसे कार्यों छे श्री देवगुरु प्रसाद थी श्री लोहदी पोसाल गच्छे श्री स्तंभतीर्थ बिंब रे विरचित। १७७ तिलोकचंद
आपकी एक रचना का उल्लेख ग्रंथ सूची में है जिसका विवरण इस प्रकार है
रचना का नाम- 'सामायिक पाठ भाषा', रचनाकाल सं० १८६२, भाषा हिन्दी, धर्म विषय पर आधारित कृति है।१७८ तेजविजय
तपा० हीरविजय सूरि की परम्परा में ये विवेकविजय तथा शुभविजय > रुपविजय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org