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________________ डालूराम - डूंगा वैद १०९ (रचनाकाल सं० १८१८ गाघ शुक्ल ५); गोमट्टसार, लब्धिसार और क्षपणासार की टीका का नाम सम्यग्यान चंद्रिका भी मिलता है। त्रिलोकसार भाषा में जैन मतानुसार भूगोल खगोल का वर्णन है (रचनाकाल सं० १८४१)१७०; मोक्षमार्ग प्रकाशक (सं० १८२७प्राप्ति स्थान भट्टारकीय जैन मंदिर अजमेर) में मोक्षमार्ग का स्वरुप वर्णन है, यह अंतिम रचना मानी जाती है जिसे पूर्ण करने से पूर्व वे दिवंगत हो गये। यदि उसका रचनाकाल सं० १८२७ है तो वे १८२५-२६ में दिवंगत हो गये।१७१ आप १९वीं शताब्दी के श्रेष्ठ गद्य लेखकों में अग्रगण्य हैं। डालूराम आपकी एक रचना गुरुपदेश श्रावकाचार (सं० १८६७) आचार शास्त्रीय है।१७२ दूसरी रचना 'नंदीश्वर पूजा' (रचनाकाल सं० १८७९, प्राप्ति स्थान दिगम्बर जैन खण्डेलवाल मंदिर, उदयपुर) का विषय पूजा और भाषा सरल हिन्दी है।१७३ इनकी दोनों रचनाओं का नामोल्लेख मात्र मिला। उनके उद्धरण विवरण नहीं उपलब्ध हो सकें। डूंगा वैद आपकी रचना का नाम है 'श्रेणिक चौपाई' (सं० १८२६); आप मालपुरा के निवासी थे। इनकी रचना में टोंक के राजा रामसिंह का उल्लेख है। रचनाकाल इस प्रकार अंत संवत् सोलह सै प्रमाण, ऊपर सही इतासौ जाण। निन्यानवै कह्या निरदोस, जीव सवै पार्दै पोष। भाद्र सुदी तेरस शनिवार, कहा तीन से षट् अधिकाय। इ सुणता सुख पासी देह, आप समाही करै सनेह। वास भलो मालपुरो जाणि, टोंक महीसो कियो वषांण। राइस्यंध जी राजा बषाणिय, चौर चौवाहन राखै आंणि। इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ हैं आदिनाथ वंदौ जगदीस, जाहि चरित थे होइ जगीस। दूजा वंदौ गुरु निरग्रंथ, भूला भव्य दिखावण पंथ। xxxxxx माता हमनै करौ सहाई, अख्यर हीण सवारो आई। श्रेणिक चरित बात में लही, जैसी जाणी चौपई कही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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