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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
९६ लीजो।"१४९
__आपकी एक रचना 'सुगुरु शतक' का रचनाकाल सं० १८५२ बताया गया है जिसकी प्रति दिगंबर जैन तेरहपंथी, मालपुरा (टोंक) में उपलब्ध है।५० आपकी प्राय: सभी रचनायें 'सुखविलास' में संकलित हैं। यह संकलन सं० १८८४ में पूर्ण हुआ था। यह कवि की अंतिम अवस्था थी। इसलिए यह प्रतीत होता है कि सुखविलास में इनकी गद्य-पद्य दोनों प्रकार की रचनायें संकलित हो गई थी।१५१
जोरावरमल
__ आपकी एक रचना 'पार्श्वनाथ श्लोको' सं० १८५१ पौस की प्रति बहादुरमल बांठिया संग्रह मीनासर से प्राप्त हुई है जिसका उल्लेख देसाई ने किया है किन्तु विवरणउद्धरण नहीं दिया है।१५२ ज्ञानउद्योत या उद्योतसागर (गणि)
आप तपागच्छीय पुण्यसागर के प्रशिष्य और ज्ञानसागर के शिष्य थे। आपकी रचनाओं का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है
'२१ प्रकारी पूजा' (सं० १८२३) का आदि
स्वस्ति श्री सुख पूरवा, कल्पवेली अनुदार, पूजा भक्ति जिन नी करो, अकबीस भेद विस्तार। स्नान विलेपन भूषणं, पुष्पवास धूप दीव, फल अक्षत तेम पत्रनी, पूग नैवेद्य अतीव। गंगा मागध क्षीरनिधि औषधि मिश्रित सार,
कुसुमेवासित शुचि जलें करो जिन स्नात्र उदार। रचनाकाल- संवत् गुण युग अचल इंदु हर्ष भरि गाइयो श्री जिनेंदु।
तास फल सुकृत थी सकल प्राणी, लहे ज्ञान उद्योत धन शिव निशानी। अंत- अगणित गुण मणि आगर नागर वंदित पाय,
श्रुतधारी उपगारी ज्ञानसागर उबझाय।
यह रचना श्रीमद् देवचंद भाग २ पृ० ८७३-८३ पर भ्रमवश देवचंद के नाम से छप गई है।
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