________________
जैनचंद - जोधराज कासलीवाल
गुरु उपदेश करी यह कथा, जीवो चिर जो इदह (१) सदा। अग्रवाल रहे गढ़ सलेम, जिनवाणी यह है नित तेम।
सुणि कह्या गुण पुबह आस, कथा कही पंडित जोगीदास।१४८ जोधराज कासलीवाल
आप प्रसिद्ध जैन हिन्दी कवि दौलतराम कासलीवाल के सुपुत्र थे। भरतपुर राज्य (राजस्थान) में कामानगर १८-१९वीं शताब्दी में साहित्यिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था। यहाँ के ग्रंथ भण्डार में पर्याप्त महत्त्वपूर्ण ग्रंथों की प्रतियाँ है। जोधराज जी वहीं जाकर रहने लगे थे। इन्होंने सं० १८८४ में 'सुखविलास' नामक ग्रंथ लिखा। इसका रचनाकाल सं० १८८४ मगसिर सुदी १४ है। आदि- णमो देव अरहंत को नमौ सिद्ध महराज,
श्रुत नमि गुरु को नमत हौं, सुखविलास के काज। आत्मपरिचय-दौलत सुत कामा बसै, जोध कासलीवाल,
निज सुख कारण यह कियौ, सुखविलास गुणमाला
उस समय रियासत भरतपुर में राजा बलवंत सिंह राज करते थे। वहाँ चार सुंदर जिन मंदिर थे और मंदिरों में समृद्ध ग्रंथ भंडार थे। इसका रचनाकाल इन पंक्तियों में बताया गया है
एक सहस्र अरू आठ सत असी ऊपर चार, सो संमत शुभ जानियो, शुक्ल पक्ष भृगुवार। ता दिन यह पूरण कियो शिव सुख की करतार।
सुख विलास इह नाम है सब जीवन सुखकार। कवि अपनी विनयशीलता का परिचय देता हुआ लिखता है
व्याकरणादिक पढ्यो नहीं भाषा हू नहि ज्ञान, जिनमत ग्रंथन ते कियो केवल भक्ति जु आन। भूल चूक अक्षर अरथ जो कछु यामे होय।
पंडित सोध सुधारियो, धर्मबुद्धि धरि जोग। उनके गद्य का भी नमूना देखिये
"जो यामै अलप बुद्धि के जोगते कहीं अक्षर अर्थ मात्रा की मूल होय तौ विशेष ज्ञानी धर्म बुद्धि मोकू अल्प बुद्धि जानि क्षमा करि धर्म जानि याकों सोध के शुद्ध करि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org