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अंत
अंत
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
मुगति नगर ना दायका अ पांच पद आराध । नमुं वीर सासनधणी, गणधर गौतम स्वामी, मांथे हाथ देई करी, सार्या धणानां काम |
रायप्रसेणी सूत्र में रे, ओ कहो अधिकार, भणे गुणे श्रवणे सुणे रे, पामे भवमल पारो रे। सूत्र विरूद्ध जे मे कहो रे, अधिको ओछो कोय; रिषि जेमलं कहि जिसो रे, मिछामि दुकड मोयो रे । दीवाली संञ्झाय का आदि
भजन करो भगवान नो, गणधर गोतम स्वामी तरण तारण जग प्रगटा, लयो नित पूनिम नाम । दीवाली दिन आवीयो ।
चन्द्रगुप्त सोल सुपना संञ्झाय (३५ कड़ी) का आदि
पडलीपुर नामै नगर, चंद्रगुप्त तिहां राय; सोले सुपणां देखिया, पाखी पोसा मांह।
"विवहार सूत्रनी चूलका, कह्यो भद्रबाहु स्वामी रे; तिण अणसारै जांण जो, ऋष जेमल जी जोड़ो रे। चंद्रगुप्त राजा सुणो।"
इसके अलावा कमलावती संञ्झाय और स्थूलभद्र संञ्झाय नामक दो रचनाओं के भी आप रचयिता थे। १४६
जैनचंद -
खरतरगच्छीय कवि थे। आपने नंदीश्वर द्वीप पूजा की रचना की है। इसका विवरण और उद्धरण नहीं उपलब्ध हुआ । १४५
जोगीदास
आपकी एक पुस्तक ‘अष्टमी कथा' की प्रति दिगंबर जैन पंचायती मंदिर दिल्ली के भण्डार में मिली है, इससे कवि का संबंध दिगम्बर संप्रदाय से मालूम पड़ता हैं । कवि ने अपने संबंध में कुछ जानकारी इन पंक्तियों में दी है
सब साहन प्रति गटमल साह, ता तन सागर कियो भवलाह । पोहकरदास पुत्र ता तरनो, नंदो जब लग ससि सूर गनो ।
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