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________________ ८२ मरुगुर्जर हि दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अंजली के जल ज्यों घटत पलपल आयु विष से विषम विविसाउत विष रस के । पंथ को मुकाम कह बाय को न गाम यह, __ जैबो निज धाम तातें कीजे काम यश के। खान सुलतान उमराव राव रान आन, किसिन अजान जान कोऊ न रही सके । सांझ रु विहान चल्यो जात है जिहान तातै, हमहूँ निदान महिमान दिन दस के।' मन बड़ा चंचल है, यह व्रत-उपवास, मुंडन-बनवास आदि वाह्याचारों से वश में नहीं आता, इसे आंतरिक शुद्धि और परमात्मा के प्रति अनन्य श्रद्धा द्वारा वशीभत किया जा सकता है यथा मन में है आस तो किसन कहा बनवास, ढहै मन चंगा तो कठौती में गंगा है। इनमें ज्ञान-वैराग्य के माध्यम से शम स्थिति की स्थापना और अंततोगत्वा शांतरस की सुन्दर अवतारणा हुई है। प्रत्येक कवित्त ३१ मात्रा का मनहरण छन्द में रचित है। भाषा प्रयोग और छन्द रचना पर किशनदास का अच्छा अधिकार है। इसलिए सभी पक्षों की दृष्टि में ये अच्छे कवि सिद्ध होते हैं । भाषा हिन्दी है। किशनसिंह इनके पितामह सिंगही कल्याण रामपुर के निवासी और पाटण गोत्रीय खंडेलवाल वैश्य थे। किसी तीर्थयात्रा के लिए संघ निकलवाने के कारण उन्हें संघी या संघवी कहा जाने लगा। सिंगही उसी का बिगड़ा रूप है। सिंगही कल्याण जी यशस्वी और दानी पुरुष थे जो त्रेपन क्रियाकोश की प्रशस्ति की इस पंक्ति से प्रमाणित होता है। संगही कल्याण सब गुण जाणं, गोत्र पाटणी सुजस लियं । कल्याण के दो पुत्र थे, सुखदेव और आनंद । सुखदेव के तीन पुत्र थान, मान और किशन यथा - तसु सुत दुय एवं गुरु सुखदेवं लहुरो आणंद सिंह सुणौ । सुखदेव सुनंदन जिनपदवंदन थान मान किसनेस सुणौ । १. डा० हरीश-गुर्जर जैन कवियों की हिन्दी साहित्य को देन पृ० १६८-१७० २. पनक्रियाकोश-प्रशति ---- प्रशस्तिसंग्रह जयपुर १९५० पृ० २२० । (डा० प्रेमसागर जैन-हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि पृ० ३२७ पर उद्धृत) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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