________________
किशन सिंह
८३ ये सूचनायें किशन सिंह की रचना वेपन क्रिया कोश की प्रशस्ति पर आधारित है इसलिए विश्वसनीय है। डॉ० कस्त रचन्द कासलीवाल ने भी पिता का नाम सुखदेव बताया है और इन्हें सांगानेर का निवासी कहा है। कवि ललितकीर्ति का शिष्य था और अनन्तकीर्ति उस समय आचार्य थे । डॉ० गंगाराम गर्ग ने किशन सिंह को मथुरादास पाटणी का पूत्र बताया है किन्तु उसका कोई प्रमाण नहीं दिया है । डॉ० गर्ग का कथन है कि मथुरादास टोंक (रामपुर) के प्रतिष्ठित निवासी थे और वहाँ एक भव्य जिनमंदिर बनवाया था। डॉ. गर्ग ने किशन सिंह के छोटे भाई का नाम आनन्द सिंह बताया है। किशन सिंह रामपुर से सांगानेर चले गये, उस समय वहाँ सवाई जयसिंह का शासन था, किशनसिंह ने वहीं सुखपूर्वक साहित्य सृजन किया। इन्होंने भी हिन्दी में ही रचनाएं की हैं। पं० नाथूराम प्रेमी ने इनके वेपनक्रियाकोश, भद्रबाहुचरित्र और रात्रिभोजन कथा का ही उल्लेख किया है। लेकिन अब तक उनकी लगभग बीस कृतियों का पता लग चुका है जिनमें णमोकार रास सं. १७६०, चौबीस दण्डक १७६४, पुण्यास्रवकथा कोष १७७३, लब्धि विधान कथा १७८२, निर्वाण काण्ड भाषा १७८३, चतुर्विशति स्तुति, चेतनगीत, चेतन लोरी, पदसंग्रह आदि प्रसिद्ध हैं। अधिकतर रचनायें जिनभक्ति और धार्मिक क्रियाओं से सम्बन्धित हैं । त्रेपनक्रियाकोश सं० १७८४- इसमें जैनों की धार्मिक क्रियाओं का उल्लेख है, इसलिए कवित्व सामान्य कोटि का ही है । इसमें २९०० पद्य हैं। यह रचना जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय हीराबाग, बम्बई से प्रकाशित है। नमूने के तौर पर कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं -
नमो सकल परमातमा, रहित अठारह दोष । छियालीस गुन प्रमुख जे, है अनंत गुन कोष । आचारज उवझाय गुरु, साधु त्रिविध निरग्रंथ ।
भवि जगवासी जनन को, दरसावै सिव पंथ ।' भद्रबाहु चरित्र इसमें अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु का चरित्र १. गंगाराम गर्ग – लेख राजस्थानी पद्य साहित्यकार, राजस्थान का जैन
साहित्य पृ० २२१ पर संकलित २. पं० नाथ राम प्रेमी हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास पृ० ६६ ३. डा प्रेमसागर जैन--हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि प० ३३०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org